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वर्ष 2022 मकर संक्रांति पर बन रहा त्रिग्रही योग, कुछ राशियों के लिए बेहद अशुभ, कुछ की बढ़ेगी मुश्किल

मकर संक्रांति 14 /15जनवरी 2022 को मनाई जाएगी इस दिन दान पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि की स्वराशि में आ रहें हैं, जो दो माह तक रहेंगे. वहीं मकर राशि में बुध पहले से ही मौजूद हैं. मकर राशि में एक साथ शनि, बुध और सूर्य की मौजूदगी से त्रिग्रही योग बन रहा है. ज्योतिष के अनुसार ये योग शुभ और अशुभ दोनों तरह के ही परिणाम देता है।

 

आपके लिए ये समयावधि कैसी रहेगी?


सूर्य दो माह तक रहेंगे शनि की राशि में

शनि, बुध और सूर्य मकर राशि में रहेंगे मौजूद

 सूर्य देव 14 जनवरी 2022 को अपने पुत्र शनि की स्वामित्व वाली मकर राशि में आ रहे हैं, जो 14 मार्च रात 12 बजकर 15 मिनट तक इसी राशि में रहेंगे. वहीं शनि देव पहले से ही मकर राशि में है. बुध ने पिछले साल दिसंबर 2021 को मकर राशि में गोचर किया था. ऐसे में एक साथ  शनि, बुध और सूर्य का मौजूदगी से मकर राशि में त्रिग्रही योग बन रहा है।


इनके लिए अशुभ 

 मेष (Aries): मेष राशि के दशम भाव में सूर्य और बुध की मौजूदगी शुभ नहीं मानी जा रही है. कार्यक्षेत्र में विषमता का सामना करना पड़ सकता है. स्थानांतरण के योग हैं, व्यापार में हानि हो सकती है.

  

वृषभ (Taurus): नवें भाव में सूर्य की मौजूदगी परिवार की सुख शांति में ग्रहण लगाएगी. पिता से संबंध खराब हो सकते हैं. परिवार में व्यर्थ में वाद विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इसलिए सावधान रहने की सलाह दी गई है.


मिथुन (Gemini): अष्टम भाव में सूर्य और शनि के एक साथ होने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. किसी लंबी यात्रा पर भी जा सकते हैं.

 

कन्या (Virgo): आपके लिए ये समय बहुत अधिक शुभ नहीं कहा जा सकता है. संतान पक्ष से तनाव मिल सकता है. विद्यार्थियों के जीवन में ये समय उथल पुथल मचाएगा. उनका पढ़ाई से ध्यान भटका हुआ रहेगा.  


धनु (Sagittarius): ये समय आपके लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है. परिवार में तनाव का माहौल आपको परेशान करता रहेगा. आपके संचित धन में भी इस दौरान कमी आएगी.                                                                                                                                              मकर (Capricorn): आर्थिक समस्या से घिरे रह सकते हैं. स्वास्थ्य को लेकर सावधान रहें. किसी गंभीर रोग की चपेट में आ सकते हैं.


मीन (Pisces): आप इस अवधि में अपने अहंकार को किनारे रखकर अपने जीवनसाथी से शांतिपूर्वक और धैर्य के साथ संवाद करें. इस अवधि में आपको अपने पेशेवर जीवन में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है


इनके लिए शुभ 


कर्क (Cancer): ये समायावधि आपके लिए शुभ रहेगी. नए संयोगी मिल सकते हैं. पदोन्नति मिल सकती है. व्यापार में लाभ के अवसर बनेंगे.

 

सिंह (Leo): पुराने विवादों से छुटकारा मिलेगा. लाभ के योग बन रहे हैं. ससुराल पक्ष से कोई विशेष उपहार मिल सकता है. 


तुला (Libra): बड़ा लाभ मिल सकता है. व्यापार में भी सफलता के योग बन रहे हैं. विदेश यात्रा पर जा सकते हैं. कोई पुराना रुका हुआ धन अचानक से मिल सकता है.


वृश्चिक (Scorpio): आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. व्यापार में लाभ के संकेत हैं. नौकरी वालों को पदोन्नति मिल सकती है.                                      


कुंभ (Aquarius): सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी. धनलाभ का योग बन रहा है. विदेश यात्रा पर जा सकते हैं.


मकर संक्रांति पर किन वस्तुओ  का दान करें, जिससे कभी  धन की कमी न हो।

सूर्य देव के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं. जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं. मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है. इस पर्व पर स्नान और दान का खास महत्व होता है. साथ ही इस पर्व पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है. इस बार 14 जनवरी दिन शुक्रवार को मकर संक्रांति मनाई जाएगी. इस दिन कुछ चीजों का दान करने से विशेष लाभ मिलता है.


कुछ चीजों का दान करने से मिलता है विशेष लाभ


संक्रांति पर स्नान और दान पुण्य का विशेष महत्व है.  इस दिन किए गए दान का कई गुना फल प्राप्त होता है. आइये जानते हैं कि इस दिन कौनसी वस्तुओं का दान करना शुभ माना गया है.


इन चीजों का करें दान 



 तिल: मकर संक्रांति पर  तिल का दान करना शुभ माना जाता है. तिल का दान करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं.



खिचड़ी: मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाना जितना शुभ है, उतना ही शुभ इसका दान करना भी माना जाता है. 



  

गुड़: इस दिन गुड़ का दान करना भी शुभ होता है. गुड़ का दान करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है.


तेल: इस दिन तेल दान करना शुभ होता है. ऐसा करने से शनि देव का आर्शीवाद मिलता है.  


अनाज: मकर संक्रांति के दिन पांच तरह के अनाज दान करने से हर तरह की मनोकामना पूरी होती है. 


घी:  इस दिन घी का दान करने से करियर में सफलता मिलती है.


रेवड़ी: मकर संक्रांति के दिन रेवड़ी का भी दान करना भी शुभ माना जाता है. 


नमक: इस दिन नमक का नया पैकेट लेकर दान करें. इससे शुक्र मजबूत होता है. 


कम्बल: इस दिन कम्बल का दान करना शुभ होता है. इससे राहु और शनि शांत होते हैं. 


चारा:  इस दिन गाय को हरा चारा खिलाना शुभ होता है.


नए वस्त्र: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को नए वस्त्र दान करने चाहिए.


 

मकर संक्रांति की तारीख को लेकर इस साल भी उलझन,  संक्रांति की तिथि पर क्यों फंसा है पेच


मकर संक्रांति इस बार भी दो दिन मनाई जाएगी। 14 जनवरी की रात 8:58 बजे सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होने की वजह से यह स्थिति बनेगी।  15 जनवरी को सूर्योदय के समय उदया तिथि में संक्रांति रहेगी। इसलिए इस दिन ही पुण्य काल रहेगा। कई पंचांगों में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 2:40 पर होना बताया गया है। समय को लेकर पंचांग भेद के चलते शैव संप्रदाय से जुड़े लोग 14 जनवरी को स्नान, ध्यान कर मकर संक्रांति मनाएंगे। लेकिन वैष्णव शनिवार को ही सूर्य आराधना करेंगे। खास बात यह है कि सूर्य इसी दिन से उत्तरायण होंगे। बुध के भी इसी राशि में रहने से बुधादित्य योग और शनि प्रदोष भी रहेगा।


पंचांगों में समय का अंतर

 14 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय अलग-अलग है। इस वजह से दो दिन मकर संक्रांति मनाई जा सकती है। लेकिन सूर्य उदया तिथि में संक्रांति 15 जनवरी को ही रहेगी। इस दिन सूर्योदय से दोपहर 1:15 बजे तक विशेष पुण्य काल रहेगा। इसमें स्नान, दान और सूर्य उपासना की जानी चाहिए। इसके बाद सूर्यास्त तक सामान्य पुण्यकाल रहेगा।


संक्रांति का वाहन बाघ, उप वाहन अश्व


14 जनवरी की रात 8:58 पर सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसमें बुध और शनि पहले से विराजमान हैं। इस दिन बुधादित्य योग होगा। मकर राशि के स्वामी शनि हैं। सूर्य इस दिन अपने पुत्र राशि शनि में रात को पहुंचेंगे। इस बार मकर संक्रांति का वाहन बाघ और उप वाहन अश्व है। किसानों और पशुपालकों के लिए लाभकारी, व्यापार में नुकसान, मौसम में उतार-चढ़ाव, राजनीति में मनमुटाव बढ़ेगा, संक्रमण वाले रोग बढ़ेंगे और सब्जी, तेल सहित अन्य खाद्य सामग्री के दामों में बढ़ोतरी होगी। श्रद्धालु स्नान, ध्यान के बाद जरूरतमंदों को खिचड़ी, कंबल, चप्पल आदि वस्तुओं का दान करने से पुण्य प्राप्त होगा।


 

मकर संक्रांति के त्योहार पर  इससे जुड़ी खास बातें...


उत्तर भारत में मकर संक्रांति को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां पर इसे खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान और खिचड़ी को भोजन किया जाता है।


मकर संक्रांति को पौष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। पौष माह में संक्रांति पड़ने के कारण इसको पौष  संक्रांति कहा जाता है।

 

सूर्यदेव लगभग एक महीने के अंतराल पर राशि बदलते हैं। जब सूर्य धनु से निकलकर मकर राशि की अपनी यात्रा आरंभ करते हैं इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। साल में कुल मिलाकर 12 संक्रांतियां आती हैं जिसमें मकर संक्रांति का विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति का पर्व हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण आ जाते हैं जिसका विशेष महत्व होता है। उत्तरायण को देवता का दिन कहा जाता है। 


मकर संक्रांति पर सभी पवित्र नदियों में स्नान, दान, जाप करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन काला तिल, तिल से बने लड्डू, हरी सब्जियां, फल और खिचड़ी का दान किया जाता है। मकर संक्रांति का त्योहार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति का क्या है महत्व।


मकर संक्रांति/ खिचड़ी 


 उत्तर भारत में मकर संक्रांति को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां पर इसे खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान और खिचड़ी का भोजन किया जाता है। 


इस दिन से प्रयागराज में माघ मेला और कल्पवास शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की प्रथा है। माना जाता है तभी से यह त्योहार खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है।


मकर संक्रांति/ पौष संक्रांति

मकर संक्रांति को पौष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। पौष माह में संक्रांति पड़ने के कारण इसको पौष  संक्रांति कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के त्योहार को पौष संक्रांति के रूप में उत्साह के साथ मनाया जाता है। 


इस दिन गंगासागर में स्नान करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और डूबकी लगाकर सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं। स्नान के बाद गरीबों और जररूतमंदों को काले तिल का दान किया जाता है।


मकर संक्रांति/ उत्तरायण

मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन की अपनी यात्रा समाप्त करते हुए उत्तरायण दिशा में चलने लगते हैं। ऐसे में इस दिन को उत्तराण के पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुजरात में मकर संक्रांति के त्योहार को सूर्य उत्तरायण के नाम से मनाते हैं। इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा होती है।


मकर संक्रांति/ मकर संक्रमण

मकर संक्रांति को मकर संक्रमण के नाम से दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन दान, पूजा-पाठ और स्नान का विशेष महत्व होता है। 


मकर संक्रामण का अर्थ होता है सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में आते हैं तो इस काल को संक्रामण काल कहा जाता है। 14 और 15 जनवरी को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे कर्नाटक में मकर संक्रमण के नाम से जाना जाता है।


मकर संक्रांति/ बिहू

 

मकर संक्रांति को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में विशेषकर असम में इस दिन को बिहू त्योहार के रूप में मनाया जाता है। बिहू का त्योहार नई फसलों के तैयार होने की खुशी में मनाया जाता है। बिहू के अवसर यहां के लोग लोक नृ्त्य और भोजन बनाया जाता है।


मकर संक्रांति/ पोंगल


मकर संक्रांति को तमिलनाडू में पोंगल के रूप मनाया जाता है।  इस दिन सूर्य उपासना करते हुए सूर्य भगवान को खीर का भोग लगाया जाता है।


मकर संक्रांति/ लोहड़ी


 मकर संक्रांति के एक दिन पहले दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी के रूप मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार नई फसलों की खुशी में मनाया जाने वाला त्योहार है।

   


खिचड़ी के बिना अधूरा है मकर संक्रांति का पर्व, किसने दिया था इस पर्व को खिचड़ी का नाम, जानें इसका धार्मिक महत्व?


संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है। घर में भी इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी बनाई जाती है और इसी को कहते हैं। इसके अलावा लोग प्रसाद के रूप में भी खिचड़ी बांटते हैं।

 

 सूर्य ग्रह के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।  मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान और दान पुण्य का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति का एक अन्य नाम भी है खिचड़ी। संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है। घर में भी इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी बनाई जाती है इसके अलावा लोग प्रसाद के रूप में भी खिचड़ी बांटते हैं। इस कारण तमाम जगहों पर इस त्योहार को भी खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं इस पर्व का नाम खिचड़ी क्यों रखा गया और इसको खिचड़ी नाम किसने दिया। आइए जानते हैं । 


किसने शुरू की यह परंपरा 

 मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी।  जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे।  


ऐसे समय में बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी। क्योंकि यह तुरंत ही तैयार हो जाती थी। इसके साथ ही ये पौष्टिक होती थी और साथ ही इससे योगियों का पेट भी भर जाता था। 


तुरंत तैयार होने वाले इस पौष्टिक व्यंजन का नाम बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी रखा।


 खिलजी से मुक्त होने के उपरांत मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया। उस दिन इसी खिचड़ी का वितरण किया गया। तब से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की परंपरा शुरू हुई। 


मकर संक्रांति के अवसर पर आज भी गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला लगता है और लोगों को प्रसाद के रूप में इसे वितरित किया जाता है।


क्या है खिचड़ी का धार्मिक महत्व?


 मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर उनसे मिलने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में उड़द की दाल को शनि से संबंधित बताया गया है। ऐसे में मकर संक्रांति पर उड़द दाल की खिचड़ी का सेवन करने से सूर्यदेव और शनिदेव दोनों प्रसन्न होते हैं। 


इसके अटरिक्त ज्योतिष शास्त्र की मानें तो चावल को चंद्रमा का, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है। वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबंध मंगल से भी जोड़ा जाए। तो ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से सभी कुंडली में लगभग सभी ग्रहों की स्थिति सुधरती है। 

   


इस दिन होता है सूर्य का राशि परिवर्तन, महाभारत युद्ध के बाद उत्तरायण पर भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह


 14 जनवरी की रात करीब 9 बजे सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस वजह से 14 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी और 15 जनवरी को संक्रांति से जुड़े पुण्य कर्म किए जाएंगे। मकर संक्रांति की तारीख को लेकर पंचांग भेद भी हैं। 


 मकर संक्रांति से जुड़ी खास बातें


सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो संक्रांति कहते हैं। 14 जनवरी को सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं।


मकर राशि का स्वामी शनि ग्रह है। शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। जब सूर्य मकर राशि में आता है तो ऐसा माना जाता है कि सूर्य अपने पुत्र के घर आए हैं।


मकर राशि में सूर्य के आने से खरमास खत्म हो जाएगा और सभी तरह के मांगलिक कर्म फिर से शुरू हो जाएंगे।


मकर संक्रांति सूर्य पूजा का महापर्व है। इस दिन सूर्य देव के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। इस दिन किसी पवित्र में स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए।


सूर्य पूजा का महत्व श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को बताया था। ये प्रसंग ब्रह्मपुराण में बताया गया है। श्रीकृष्ण ने सांब को बताया था कि वे स्वयं भी सूर्य की पूजा करते हैं।


हनुमान जी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था और सूर्य के साथ चलते-चलते ही सभी वेदों का ज्ञान हासिल किया था।


सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए। मकर संक्रांति पर तांबे के बर्तनों का दान करना चाहिए।


सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। सूर्य को ज्ञान का कारक माना गया है। जो लोग रोज नियमित रूप से सूर्य को जल चढ़ाते हैं, उनकी बुद्धि प्रखर होती है और बुद्धि से संबंधित कामों में सफलता मिलती है।


मकर संक्रांति के समय ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। इसके बाद से ठंड कम होने लगती है और गर्मी बढ़ने लगती है।


उत्तरायण के संबंध में मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने उत्तरायण पर ही देह त्यागी थी।


हिंदू धर्म में उत्तरायणकाल में सिर्फ जन्म लेना ही नहीं, बल्कि मृत्यु को प्राप्त होना भी उत्तम माना गया है. आइए जानते हैं इस दिन दान के साथ-साथ क्या करने से करने चाहिए, जिससे कुंडली में मौजूद दोषों से छुटकारा मिलता है?


दान से दूर हो जाते हैं सारे दुख


मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है. इस दिन दान आदि करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इस दिन दान करने के लिए किसी मंदिर में जाकर चावल, घी, दही, आटा, गुड़, काला तिल, सफेद तिल, लाल मिर्च, मिश्री, आलू और आलू आदि चीजों का दान किया जा सकता है. इस दिन दान करने से जीवन के सभी दुखों का नाश होता है.  


मकर संक्रांति का महाउपाय 


●कुंडली में सूर्य से संबंधित दोष दूर करने के लिए लाल चन्दन, घी, आटा, गुड़, काली मिर्च आदि का दान करना उत्तम रहता है. 


● किसी जातक की कुंडली में चंद्र ग्रह कमजोर होने पर चावल के साथ, कपूर, घी, दूध, दही, सफेद चंदन आदि का दान कर सकते हैं.


●मंगल ग्रह के दोष दूर करने के लिए गुड़, शहद, मसूर की दाल, लाल चन्दन आदि का दान किया जा सकता है. 


●बुध ग्रह के दोष को दूर करना चाहते हैं तो चावल के साथ धनिया, मिश्री, सूखा तुलसी पत्ता, मिठाई, मूंग, शहद का दान करना उत्तम रहता है. 


●बृहस्पति ग्रह से जुड़े दोष शहद, हल्दी, दाल, रसदार फल, केला आदि का दान करने से दूर होते हैं. 


●शुक्र दोष के लिए मिश्री, सफेद तिल, जौ, चावल, आलू, इत्र आदि का दान बताया गया है. 


●ज्योतिष अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस महापर्व पर शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से मिलने आते हैं. ऐसे में इस दिन सूर्यदेव के साथ शनिदेव की पूजा भी महत्वपूर्ण होता है. वहीं, कुंडली में शनि दोष होने पर मकर संक्रांति के दिन काला तिल, सफेद तिल, सरसों का तेल और अदरक आदि सामग्री दान करने से दोष दूर होता है. 


मकर संक्रांति पर करें ये कार्य 

•मकर संक्रांति के दिन तिल के तेल की मालिश जरूर करें. 


•मकर संक्रांति पर तिल का उबटन लगाने से शरीर कांतिमान बना रहता है और व्यक्तित्व में निखार आता है. 


•इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है. अगर नदी या सरोवर में जाना संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. 


•इतना ही नहीं, सुख-सौभाग्य और श्री की प्राप्ति के लिए पूजा के बाद तिल से हवन करें.


•मकर संक्रांति  के दिन तिल से बने खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए. 


 मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व


•  मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है।

 

• मकर संक्रांति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है।

 

• इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।


 

• वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।


 

• इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है।

 

• पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।

 

• इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। 


मकर संक्रांति राशि दान 


मेष-गुड़, चिक्की, तिल 

वृषभ-सफेद कपड़े और सफ़ेद तिल 

मिथुन-मूंग दाल, चावल और कंबल

कर्क-चांदी, चावल और सफेद वस्त्र 

सिंह- तांबा और सोने के मोती

कन्या-चावल, हरे मूंग या हरे कपड़े 

तुला- हीरे, चीनी या कंबल 

वृश्चिक-मूंगा, लाल कपड़ा और काला तिल

धनु-वस्त्र, चावल, तिल और गुड़

मकर-गुड़, चावल और तिल 

कुंभ-काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी और तिल

मीन-रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल और तिल

आचार्य पवन तिवारी


आचार्य पवन तिवारी

संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान


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