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मुझे जरा गौर से देखिए... डेढ़ दशक पहले ऐसी बाढ़ आई, कि हमारा वजूद ही जमींदोज हो गया,अब हमें एक ऐसे 'माली' की है दरकार

 

मैं पुल हूं..मुझे जरा गौर से देखिए। महज तीन दशक पहले मुझे बड़ी उम्मीदों से बनाया गया था। मुझ पर गुजर कर प्रतिदिन क्षेत्र से अपने सपनों की दुनिया तामीर करने तहसील मुख्यालय व जिला मुख्यालय लखीमपुर जाने वाले लोगों की तादात हजारों में थी, लेकिन डेढ़ दशक पहले ऐसी बाढ़ आई कि हमारा वजूद ही जमींदोज हो गया। अब न मुझ पर कोई आता है और न जाता है। ऐसा हो भी क्यों न? मेरे ऊपर से गुजरना जानलेवा जो बन गया है। अब हमें एक ऐसे 'माली' की दरकार है जो हमारे 'उजड़े चमन' को आबाद कर सके।

आयुष मौर्य 

धौरहरा खीरी ।जनपद बहराईच की सीमा और घाघरा -शारदा नदियों की तलहटी में आबाद गाँजरवासियों के लिए बाढ़ कोई नई बात नहीं। 


साल-दर-साल यहां के लोगों को बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है। विधानसभा क्षेत्र मे बह रहे दहोरा नाले के उस पार बसे दर्जनो गाँवों के निवासियों का तहसील व जिला मुख्यालय आने के लिए बारिष के दिनों मे कुछ मिनटों की दूरी घण्टो मे तय करनी पड़ती थी ।


सन् 1986 मे बाबूबनारसी दास के मुख्यमन्त्रित्व काल मे यहाँ से विधायक रहे पं तेजनरायन त्रिवेदी के प्रयासों से पाँच लाख की लागत से पण्डित पुरवा -सुजई कुण्डा मार्ग पर  दहोरा नाले पर लगभग 30 मीटर लंबा पुल का निर्माण कराया। 


तब से करीब दस वर्ष तक लगभग दो दर्जन गांवों की 50 हजार आबादी के अलावा धौरहरा कस्बे व आसपास के लोग बड़ी उम्मीदों से हमारे ऊपर से गुजर कर अपना सफर तय करते थे ।


1996 में बाढ़ आई और पानी की धारा ने हल्की करवट ली और हमारी दीवारें ही धराशायी हो गयी। 


क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से सन् 1997 में जिला पंचायत अध्यक्ष रही लीला देवी ने मरम्मत के लिए सवा लाख रूपए उपलब्ध करवाए ।


प्राप्त धन व ग्रामीणों के श्रमदान से 1997-1998 मरम्मत करवाई गई ,और क्षेत्रीय लोगों का आवागमन बहाल हो गया ।लेकिन नियति पर भला किसका बस चला? 


पुनः 2002 मे आई भीषड़ बाढ़ ने हमारा अस्तित्व ही समाप्त कर दिया । हमारे वजूद के धराशायी होने के कारण यहाँ के पंण्डित पुरवा , मगरौली , लहसौरी पुरवा , टापर पुरवा घोसियाना , सुजई कुण्डा , नज्जापुरवा भटपुरवा ,धारीदासपुरवा ,हरसिंहपुर , सुनारनपुरवा ,बिन्जहा ,मगरौली ,फुटौहापुरवा सहित करीब दो दर्जन गाँवों का सीधा सम्पर्क बरसात मे तहसील मुख्यालय से समाप्त हो जाता है ।


लोग पुल के टूटने के पीछे निर्माण की तकनीकी खामी बताते हैं। फिलहाल पुल के पुन: वजूद में आने की दरकार है, क्योंकि धौरहरा जाने के लिए लोगों को अब 2किलोमीटर की जगह बीस किलोमीटर या उससे अधिक दूरी तय करनी पड़ती है। 


इससे लगभग पचास हजार आबादी अपरोक्ष रूप से प्रभावित है। हमारी दशा देख कर हर किसी के मुंह से लोक कवि रफीक सादानी की यह पंक्तियां बरबस फूट पड़ती हैं-'बरखा आवा, पुल ढहिगा'।




फिर से पुल न बनने का है लोगों को मलाल


पंण्डित पुरवा -सुजई मार्ग पर दहोरा नाले पर बने इस पुल के धराशायी होने का मलाल लोगों को है।  


यहाँ के ग्रामीणों का कहना है कि इस पुल से हमें ब्लॉक मुख्यालय धौरहरा आने के लिए दो किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था जो अब बरसात के दिनों मे 20 किलोमीटर में तब्दील हो गया है। 


बावजूद इसके, पुल का पुनर्निर्माण नहीं शुरू हो पाया है। ग्रामीण बताते हैं कि चुनावी समय मे नेता आते है तमाम वादो के साथ पुल बनवाने का वादा भी करते है ,पर जीतने के बाद हमारी समस्या भूल जाते हैं । 


इस पुल के बनने से लगभग दो दर्जन गांवों के लोगों की बरसात के दिनों में जिंदगी काफी आसान हो गई थी, लेकिन पुल टूट जाने से अब स्थिति तीन दशक पहले जैसी हो गई है। 


बाढ़ के दौरान हम घरों में कैद होकर रह जाते हैं। कोई बीमार हो अथवा कहीं रिश्तेदारी में जरूरत पड़ जाए अथवा जरूरी सामान खरीदना हो तो लोग बाजार तक नहीं पहुंच पाते हैं। विधानसभा चुनाव में यह पुल बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है।

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