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मछली पालन’’ से आय एवं रोजगार की अपार सम्भावनायें

सुनील उपाध्याय

बस्ती।जिले मे कृषि विज्ञान केन्द्र बस्ती द्वारा क्षमता योजनान्तर्गत ‘‘मिश्रित मत्स्य पालन’’ विषय पर ग्राम माझा में प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। 



प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए केन्द्राध्यक्ष, प्रो0 एस0एन0 सिंह ने अवगत कराया कि भारत सरकार, क्षमता योजना द्वारा एकीकृत फसल प्रणाली (इन्टीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम) के प्रमुख घटक पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन आदि को खेती के साथ समावेश करके कृषकों के रोजगार का साधन बनाना चाहती है। 


इसी उद्देश्य हेतु कुलपति, डा0 विजेन्द्र सिंह एवं निदेशक प्रसार, प्रो0 ए0पी0 राव के दिशा निर्देशन में यह प्रशिक्षण आयोजित किया गया है। 



उन्होने बताया कि इस जनपद में अनेक जलश्रोत उपलब्ध है। ये जलश्रोत मत्स्य जैव विविधता एवं निरन्तर बढती हुई जनसंख्या को मछली के रूप में उन्नत प्रोटीन उपलब्ध कराने में सक्षम है। 



भारतीय कार्प मछलियाॅ रोहू, भाकुर व नैन, तथा विदेशी कार्प मछलियाॅ सिन्वर कार्प, ग्रास कार्प व कामन कार्प को एक ही तालाब में पालकर जल क्षेत्र का समुचित उपयोग कर सकते है। साथ ही साथ नवीनतम् सघन मछली पालन तकनीक से शीघ्र बढवार वाली पंगेसियस मछली का पालन करके भी आय अर्जित कर रहे है। 



उन्होने कहा कि एकीकृत मत्स्य पालन के तहत मुर्गी, बत्तख, गाय, बकरी, धान, बागवानी के साथ मछली पालन भी किया जा सकता है जिसे वेरोजगार नवयुवक रोजगार एवं आय के लिए अपना सकते है।



पशुपालन विशेषज्ञ, डा0 डी0के0 श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि मछली पालन हेतु काली चिकनी मिट्टी, सिल्ट युक्त काली मिट्टी, दोमट युक्त चिकनी मिट्टी, तालाब के निर्माण हेतु उपयुक्त होती है। 



तालाब का आकार आयताकार एवं लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर होना चाहिए। यदि पुराना तालाब है तो उसे 2-4 वर्ष के अन्तराल पर सुखाना, अवांछित मछलियाॅ (कवई, पावदा, टेंगर, पढन आदि) एवं जलीय खर-पतवारों का निष्कासन आवश्यक है। 



इन मछलियों के निष्कासन हेतु 25-30 कु0/हे0 की दर से महुवा की खली का प्रयोग करते है। तालाब में संचयन के लिए तेजी से बढने वाली मछलियों की प्रजातियों का चयन करते है। एक हेक्टेअर के तालाब में 10,000 मत्स्य अंगुलिकाओं (कतला 20%, रोहू 30%, नैन 15%, सिल्वर कार्प 10ः% ग्रास कार्प 10%, एवं कामन कार्प 15%) का संचय करते है, जिससे तालाब के सम्पूर्ण जल क्षेत्र का उपयोग हो जाता है तथा मछलियों की भी बढवार अच्छी होती है। 



मछलियों का पूरक आहार प्लवक है। इसके अतिरिक्त मछलियों की अच्छी बढवार हेतु परिपूरक आहार के रूप में मछलियों के वनज का 5-6 प्रतिशत आहार देते है। 



इसमें राइस पालिस 40%, सरसों की खली 40%, सोयाबीन मील 18%, एवं खनिज लवण मिश्रण 2% को मिलाकर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से संतुलित आहार तैयार कर सकते है। 


ग्रास कार्प मछलियों के बढवार हेतु बरसीम, जई, हाईब्रिड नैपियर आदि हरे चारे का भी प्रयोग तालाब में करते है।



डा0 प्रेम शंकर, पौध रोग विशेषज्ञ ने अवगत कराया कि यदि तालाब की सफाई, चूना आदि की व्यवस्था सही प्रकार से होती रहे तो मछलियों में बीमारी की सम्भावना कम ही रहती है। 



तालाब का पानी दूषित होने से मछलियों के शरीर पर वाह्य परजीवी लग जाते है, जिससे उनके शरीर पर घाव बन जाते है। इसकी रोकथाम हेतु तालाब में 3-5 किग्रा/एकड पोटैशियम परमैगनेट का प्रयोग करते है। 


मछलियों में गिलराट की समस्या होने पर गलफडें (गिल) सड जाते है। इसके इलाज के लिए मछलियों को एण्टीब्राइन के घोल में स्नान कराना चाहिए तथा तालाब में पानी की निकासी करके ताजा पानी भरवाना चाहिए।



डा0 आर0वी0 सिंह ने अवगत कराया कि तालाब की उर्वराशक्ति बढाने एवं रोग मुक्त रखने हेतु चूना 200-250 किग्रा/हे0, गोबर की खाद 25-30 कु0/हे0 की दर से मछलियों के संचय से पूर्व तालाब की जुताई के समय डालते है। 


साधारणतयः कच्चे गोबर को तालाब में डालने के 12-13 दिन बाद 20 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 25 किग्रा, यूरिया एवं 4 किग्रा एम.ओ.पी. प्रति हो0 प्रति माह प्रयोग करते है। 


जैविक एवं रासायनिक खादों के प्रयोग के 10-12 दिन बाद तालाब का पानी हल्का भूरा दिखायी देने लगता है, जो कि प्राकृतिक आहार की पर्याप्त मात्रा को दर्शाता है जिसका प्रयोग मछलियाॅ भोजन के रूप में प्रयोग करके जल्दी बढवार हासिल कर लेती है।


इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम प्रधान श्री साहबदीन निषाद ने किया। इस अवसर पर ओम प्रकाश वर्मा, कमलेश कुमार, श्री नरायन, आदि भी उपस्थित रहे।

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