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पहलवानी में धोबीपाट भरता है युवाओं में रोमांच:पहलवान सुनील कुमार





सत्येन्द्र खरे 
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले में क्रिकेट से भी ज्यादा रोमांच अपने अन्दर समेटे पहलवानों का दंगल युवा पीढ़ी ही नहीं बच्चो और बूढों को आकर्षित कर रहा है | जिसका मकसद युवा पीढ़ी सेहत के प्रति जागरूक कर स्वस्थ भारत बनाने की प्रेरणा देना है | 105 साल पुरानी परंपरा की सबसे खास बात यह है कि यह बिना किसी सरकारी मदद के ग्रामीणों के आपसी सहयोग से कौशाम्बी में होती है , जहाँ देश के कोने कोने से आने वाले पहलवान इनामी दंगल में अपने पौरुष और दाव पेच का दम दिखाते है | 
कौशाम्बी के पश्चिम शरीरा इलाके में यह मजमा देश के सबसे प्राचीन खेल मल्य युद्ध को देखने के लिए जमा है | यहाँ पहलवान का हर दाव दर्शको में गजब का उत्साह भर देता है | देश के कोने कोने से आने वाले पहलवान मुकाबले में अपने शरीर के पौरुष का दम और दाव पेच का हुनर अपने साथी पहलवान पर आजमा कर जीत का सेहरा बाधते है | लोगो में पहलवानों का हुनर देखने का रोमांच ऐसा है कि लोग मीलो दूर से दंगल देखने आते है | कई दंगलो में हिस्सा ले चुके जालौन से आये पहलवान सुनील कुमार के मुताबिक उनकी कुश्ती में क्रिकेट से ज्यादा रोमांच ठीक उसी तरह आता है जैसे क्रिकेट में बैट्स मैन गेद पर चौके और छक्के लगता है , उसी तरह वह खुद पहलवानी में धोबी पाट मार कर अपने साथी पहलवान को हवा में उछाल देते है | जिसे देख दर्शक रोमांच से भर उठाते है |  


कुश्ती की परम्परा देश से जमीदारी प्रथा ख़त्म होने के बाद से ही धीरे धीरे खो सी गई है | कुश्ती के जानकार बताते है कि यह खेल नैतिकता और चरित्र भरा खेल है जिसमे दो पहलवान अपने दमखम को नियमो के दायरे में रहकर खेलते है | कौशाम्बी में आज भी रोमाच के इस खेल को जीवित रखने वाले आयोजक बताते है कि वह पिछले 15 सालो से कौशाम्बी की अलग अलग ग्राम सभाओ में इस तरह के दंगल करवाते है | इन दंगलो में किसी तरह का सरकारी सहयोग उन्हें नहीं मिलता | यदि सरकारी सहयोग उनको मिले तो यह खेल दिन दूनी और रात चौगनी गति से दुनिया के सामने उभर का आ जाए | दंगल कमेटी के अध्यक्ष पवन कुमार मिश्रा के मुताबिक पहलवानी का यहाँ दंगल सिर्फ ग्रामीण जनता के चंदे और उनके सहयोग से ही होता है इसमें किसी तरह का उनको सरकारी आर्थिक सहयोग आज ताज नहीं मिला | 

 

कुश्ती के इस खेल में भले ही इसके खिलाड़ी को क्रिकेट चकाचौध भरी जिंदगी हासिल नहीं होती ,पर यह खेल और उसका खिलाडी जब अपने पूरे सबाब पर होता है तब इसका रोमांच देखते ही बनता है | इतना ही नहीं अपने मन पसंद पहलवान पर जहाँ दंगल कमेटी के लोग इनाम घोषित करते है वही आम दर्शक भी अपने मनपसंद पहलवान पर बोली लगा कर उनकी हौसला आफजाई करते है | 



दंगल के इस परंपरागत खेल में इस साल कौशाम्बी में एक दर्जन पहलवान दिल्ली, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशो से दंगल में हिस्सा लेने पहुचे है | बेहद रोमांचक मुकाबले में तमिलनाडु के पहलवान शक्ति मुरुगन ने जार्ज सेंटर आर्मी बरेली के पहलवान जिल्ले पहलवान को हराया |
जिसके बाद इनामी दंगल में पांच किलो चादी की गधा और 35 हज़ार के लिए हुए मुकाबले में देश की राजधानी दिल्ली के मोहम्मद गनी पहलवान ने पंजाब के ओम बीर पहलवान व राजस्थान के रिंका पहलवान को अपनी गोरिल्ला स्टाइल धोबी पछाड़ दाव में उलझा कर चारो खाने चित्त कर दिया | फ़ाइनल मुकाबले में भारत केसरी का ख़िताब हासिल कर चुके हरियाणा कुरुक्षेत्र के मंजीत पहलवान ने कड़े मुकाबले में दिल्ली के मोहम्मद गनी पहलवान को चित्त कर इनामी दंगल कौशाम्बी का ख़िताब अपने नाम कर लिया | 
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