सुनील उपाध्याय
बस्ती । जिसे अपने माता पिता में ईश्वर के दर्शन नहीं होंगे उन्हें मंदिरों में भी सुख शांति नहीं मिलेगी। सभी दिव्य गुण जिसमें एकत्र होते हैं वही परमात्मा है। श्रीराम का अवतार जगत को मानव धर्म उपदेश के लिये था। ‘‘ऐसे को उदार जग माही, बिन सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाही।। श्रीराम का चरित्र दिव्य है। ईश्वर के धर्म मर्यादा का जो पालन करे वही सच्चा मनुष्य है। लक्ष्मण विवेक, भरत वैराग्य और शत्रुघ्न सद विचार स्वरूप है। चंदन और पुष्प से श्रीराम की सेवा करना अच्छी बात है किन्तु उनकी मर्यादा का पालन सर्वोत्तम है। जिसका व्यवहार रामजी जैसा होगा उसकी भक्ति सफल होगी। यह सद् विचार डॉ. अवधेश जी महाराज ने श्री बाबा झुंगीनाथ धाम में आयोजित 8 दिवसीय शतचण्डी श्रीराम महायज्ञ के तीसरे दिन व्यक्त किया।
मानस किंकर आचार्य सिद्धार्थ ने भागवत महिमा का गान करते हुये कहा कि कंस अभिमान है, वह जीव मात्र को बन्द किये रहता है। संसार में जो जाग्रत रहता है उसे ही परमात्मा के दर्शन होते हैं। यश सभी को दोगे और अपयश अपने पास रखोगे तो कृष्ण प्रसन्न होंगे। दूसरे को जो यश दे वही तो यशोदा माता है। जो व्यक्ति वसुदेव की भांति श्रीकृष्ण को अपने मस्तक पर विराजमान करते हैं उनके सभी बन्धन टूट जाते हैं। सम्पत्ति और सन्तति का सर्वनाश हो गया था फिर भी वसुदेव-देवकी दीनता पूर्वक ईश्वर की आराधना करते हैं।
महर्षि बाला जी महाराज ने जनकपुर में धनुष यज्ञ, जनक की महिमा, फुलवारी प्रसंग, जनकपुर के नागरिकों द्वारा श्रीराम लक्ष्मण का स्वागत, राजे रजवाड़ों की उपस्थिति और श्रीराम विवाह महिमा के प्रसंगो का विस्तार से वर्णन करते हुये कहा कि मनुष्य एक ओर तो पुण्य करता है दूसरी ओर पाप, इसलिये हाथ कुछ नहीं लगता। राम माता पिता की आज्ञा का सदैव पालन करते थे। श्रीराम विवाह का उद्देश्य जगत का कल्याण और उदण्ड राजाओं केे अहंकार का समापन करना है। शिव धनुष उठा पाने में असफल रहे राजाओं का अहंकार समाप्त हो गया। श्रीराम के प्रत्येक कार्य में लोक मंगल की भावना छिपी है।
आचार्य दुष्यंत ने कहा कि जितने देवी देवताओं की आराधना कर लो किन्तु बिना माता पिता की सेवा के कल्याण संभव नही है। माता पिता धरती के जीवित देवता है। श्रीराम ने माता पिता के आदेशों का सदैव पालन किया। आज कल के बेटे माता पिता की सम्पत्ति में तो हिस्सा चाहते हैं किन्तु उन्हें प्रणाम करने और आदर देने में भी संकोच करते हैं।
श्रीराम कथा में मुख्य यजमान पं. माता बदल पाठक, संयोजक धु्रवचन्द्र पाठक, ओम प्रकाश पाठक, जितेन्द्र पाठक, रामकेवल यादव, विमलेन्दु शुक्ल, कमला पाण्डेय, श्रवण शर्मा, खाजे मिश्र, अनिल पाठक, विनोद पाण्डेय, आशा राम यादव, श्रीमती कलावती पाठक, सावित्री सिंह, राम सुन्दर चौधरी, नरेन्द्रनाथ त्रिपाठी, रंगई सिंह के साथ ही बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे।


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