सुनील उपाध्याय
बस्ती । प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा बुधवार को कलेक्टेªट परिसर में अन्तर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुये मुख्य अतिथि डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि नेस्को ने 1999 में प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी। सिर्फ मातृ शब्द की वजह से मातृभाषा का सही अर्थ और भाव समझने में हमेशा से दिक्कत हुई है। मातृभाषा बहुत पुराना शब्द नहीं है, मगर इसकी व्याख्या करते हुए लोग अक्सर इसे बहुत प्राचीन मान लेते हैं। बच्चे का शैशव जहां बीतता है, उस माहौल में ही जननी भाव है। जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है, जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है, जहां विकसित-पल्लवित हो रहा है, वही महत्वपूर्ण है। विशिष्ट अतिथि श्याम प्रकाश शर्मा एडवोकेट ने कहा कि मातृभाषा में मातृशब्द से अभिप्राय उस परिवेश, स्थान, समूह में बोली जाने वाली भाषा से है जिसमें रहकर कोई भी व्यक्ति अपने बाल्यकाल में दुनिया के सम्पर्क में आता है।
अध्यक्षता करते हुये सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि हर काल में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है। इसके बावजूद मातृ भाषा का अपना विशेष महत्व है और उसका महत्व प्रत्येक देश काल में युगो तक बना रहेगा।
संचालन करते हुये डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने मातृ भाषा से सम्बंधित अनेक उद्धरणों पर विस्तार से प्रकाश डाला। कहा कि मातृभाषा शब्द की पुरातनता स्थापित करनेवाले ऋग्वेदकालीन एक सुभाषित का अक्सर हवाला दिया जाता है-मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक, बालिका अपनी मां से ही बोली भाषा सीखता है और जीवन के आखिरी क्षण तक उसका प्रभाव बना रहता है।
गोष्ठी को पं. चन्द्रबली मिश्र, आतिश सुल्तानपुरी, डा. सत्यदेव त्रिपाठी, हरीश दरवेश, लालमणि प्रसाद, परशुराम शुक्ल, वसीम अंसारी आदि ने सम्बोधित किया। सामीन फारूकी, सुमेश्वर यादव, दीनानाथ यादव, शव्वीर अहमद, रो. विनय कुमार श्रीवास्तव, लालजी पाण्डेय, राजदेव वर्मा, कृष्ण चन्द्र पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।
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