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पूर्वजों के जमाने की विलुप्त हो रही फगुआ


मोजीम खान
सिंहपुर,अमेठी-पूर्वजों के जमाने मे होली के लगभग दस दिन पहले से ही ढोलक की थाप के साथ फाग गीत एवं चौताल द्वार होली गीत और रंगो से सराबोर होकर होली के मस्तानों की टोलियॉं निकल पड़ती थी।जब होली के त्यौहार मे ऐसा हुआ करता था तो बहुत ही सुहाना मंजर नजर आता था और सारे लोग गिले शिकवे मिटाकर एक दुसरे के गले मिलकर होली की बधाइयां देते थे।और जिस मुहल्ले से लोग निकलते थे तो लोग अपने से बडो़ का आदर करते हुये काका,काकी, दादा, दादी पाँव लागि कहते थे और काका,काकी,दादा,दादी अपना आशीर्वाद देते थे।किन्तु भइया अब के जमाने मे तो डी जे का दौर चल रहा है।डी जे के धुनों मे मदमस्त और शराब के नशे मे चूर लोग होली के रंग को फीका करने की जुगत मे लगे रहते है।होली के त्यौहार मे लोग गले तो जरूर मिलते है लेकिन दिल से नही।और मन के अंदर बँधी गाँठ,बँधी की बँधी रह जाती है ।जिसके कारण द्वार,चौताल एवं फगुआ गीत नये युग मे सुनाई ही नही देते है।आम आदमी पार्टी के जिला कोषाध्यक्ष राजेश प्रभात वर्मा ने बताया की हमारे पूर्वजों के जमाने मे लोग कई दिन पहले से ही होली के त्यौहार की तैयारियाँ शुरू हो जाती थी लेकिन आज के इस दौर मे किसी के पास समय ही नही रहता है।लोग भाईचारे से काफी दूर जा चुके है।डी जे के इस दौर मे लोग फगुआ गीत,प्रेम मिलन सब भूल चुके है।मोहम्मद रहबर सिद्दिकी सपा यूथ ब्रिगेड अमेठी जिला मीडिया प्रभारी ने बताया की हमारे बचपन लोग रंग खेलने के बाद सभी वर्गों के लोग एकत्र होकर एक दूसरे को सारे गिले शिकवे मिटाकर गले मिलते थे।और द्वार द्वार जाकर खुशी के साथ होली का त्यौहार मनाते थे लेकिन इस जमाने मे कोई भी त्यौहार कब आता और जाता है पता ही नही चलता।किसी को अब मिलने मिलाने का समय नही रहा है जिससे भाईचारा बहुत दूर होता जा रहा है।


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