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कुमारी अर्चना"बिट्टू" की मैलिक रचना "ग़ज़ल"








आपको हक़ जताना नहीं था
प्यार दिल में बढ़ाना नहीं था!

नफ़रतों की सियासत थी करनी
अब गले से लगाना नहीं था!

क्यूँ कुचलते रहे फूल सा दिल
आपको आज़माना नहीं था!

रब से जिसको दुआओं में माँगे
प्यार उसका भुलाना नहीं था!

नफरते बढ़ रही जिससे दिल में
ग़ज़ल मुझको वो गाना नहीं था!

लोग मिलते है खंजर छिपाए
पहले ऐसा ज़माना नहीं था!

गैर से आज नज़रें मिलाकर
अर्चना को रूलाना नहीं था!

कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मैलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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