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काव्य रचना "तेजाब"



     तेजाब
सुनो तुम तो कहते थे प्यार करता हूं,
देखो तुम ने मेरा क्या हाल बना दिया,
तुम ने मेरे मन की एक बार भी नहीं जानी और मेरा तुम ने जिस्म जला दिया।

मानती हूं तुम प्यार करते होगे मुझ से,
मै प्यार करती हूं या नहीं मेरी भी मर्जी पूछते मुझ से,
तेरे गुस्से में तेजाब था देखो तुम ने मेरा चेहरा गुलाब सा खिला दिया,
तुम ने मेरे मन की एक बार भी नहीं जानी और मेरा तुम ने जिस्म जला दिया।

अब क्या बताऊं हालत मेरी खुद की मै पहचान भी नहीं कर पाती,
डर अब तुझसे नहीं लगता पर  देखते ही आइना मै खुद से डर जाती,
अब तो अा जाओ मुझे लेने,अब क्यो मुझे अकेला छोड़ दिया,
तुम ने मेरे मन की एक बार भी नहीं जानी और मेरा तुम ने जिस्म जला दिया।

दर्द की एक हद को मैने खुद सहते हुए देखा है,
पल पल मरना क्या होता है,मैने खुद को मरते देखा है,
तुम मेरे जिस्म के भूखे थे,लो ये जिस्म भी तुम को सौंप दिया,
तुम ने मेरे मन की एक बार भी नहीं जानी और मेरा तुम ने जिस्म जला दिया।

कितने फिरते है दिल फेक आशिक़ इस जमाने में,
नोचते सिर्फ शरीर को वफ़ा की कौन उम्मीद करे इस जमाने में,
"मनदीप"होते मर्द जिस्म के भूखे देखो आज तुम ने ही बता दिया,
तुम ने मेरे मन की एक बार भी नहीं जानी और मेरा तुम ने जिस्म जला दिया।

मनदीप साई

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