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माहे रमजान के महीने में खुल जाते हैं जन्नत और रहमत के दरवाजे

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ब्यूरो चीफ: सद्दाम हुसैन
बिहार: (मो० मेराज आलम सामाजिक कार्यकर्ता एवं जर्नलिस्ट) मधेपुरा एवं पूरे देशभर में लोकडाउन लगा है और इसी बीच बीच रमजान का महीना भी आ गया इस महिने की काफी फजीलत है। इस मिहीने मे काफी इबादत अल्लाह को पसंद है। पूरे मुल्क में जिस प्रकार से कोरोना वायरस से आम जन मानुस काफी परेसान इसके बावजूद भी लोग अल्लाह की इबादत करते है, और वायरस के खात्मे के लिए दुआ भी करते है देश, प्रदेश अपने मुल्क के अमनो अमान के लिए दुआ भी कर रहे हैं। माहे रमजान महीना के बारे मे कहा जाता है बहुत ही बरकत वाला महीना है। यही वह अफजल महीना है, जिसमें कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ। इस माह-ए-मुबारक में अल्लाह की रहमत खुलकर अपने बंदों पर बरसती है। रमजानुल मुबारक का पाक महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। पहले अशरे में अल्लाह ताआला की रहमत नेक बंदों पर बरसती है। तीनों अशरे दस-दस दिन के होते हैं। अल्लाह ताला रमजान के पहले अशरे में रहमत नाजिल करता है और दूसरे अशरे के दस दिनों में अल्लाह अपने नेक बंदों पर मगफिरत नाजिल करता है। तीसरे अशरे में दस दिनों में अल्लाह अपने नेक बंदों को दोजख से आजादी देता है। इस महीने में रोजा रखने की बरकत से अल्लाह ताआला आदमी के हर अच्छे अमल पर उसका सवाब सात सौ गुना तक बढ़ा देते हैं। रमजान के महीने में अल्लाह की रहमत बंदों पर बरसती हैं। रमजान के महीने में जन्नत और रहमत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं, शैतान को बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है। रमजान के महीने में रोजा रखने का अर्थ है, अल्लाह के लिए खुद को समर्पित कर देना। पूरे रमजान के दौरान रोजेदार को पांचों वक्त की नमाज फर्ज है। रोजे में किसी की बुराई न करें। झूठ न बोलें। गैर इंसानी काम न करें। इफ्तार का समय हो जाए तो बिना देर किए इफ्तार करें और अगर मुमकिन हो तो खजूर से इफ्तार करें।
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