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Gonda:सरकारी सहायता के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही दिव्यांग महिला



ए. आर. उस्मानी
गोण्डा। सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत देखनी हो तो करनैलगंज तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत देवा पसिया में आइये। आंकड़ों में सब कुछ ठीक-ठाक है, पर हकीकत में यहां बुरा हाल है।
     करनैलगंजतहसील इलाके के मजरा बस्ती पुरवा देवापसिया की एक 38 वर्षीय महिला व इसी गांव की 11 साल की शहनाज पुत्री लियाकत विगत 7 वर्षों से दिव्यांग पेंशन के लिए भटक रही है। ग्राम प्रधान सहित डीएम से लेकर सीएम तक गुहार लगाने के बाद भी नतीजा शून्य ही रहा है। पहले झोलाछाप डाक्टर के इलाज से हाथ व पैर में सड़न पैदा हुई और फिर हाथ व पैर काट दिया गया। इलाज के दौरान एक बीघा खेत भी गांव के दबंगों ने गिरवी रख लिया। अब सरकारी राशन व मजदूरी के सहारे जीवन चल रहा है। महिला का आरोप है कि पेंशन के लिए कहने पर संबंधित लोग दुत्कार लगाते हैं।
      सोमवार को पत्रकारों से मुलाकात के दौरान उक्त महिला व उनके परिजनों ने रो-रोकर अपनी आपबीती सुनाई। तहसील इलाके के मजरा बस्ती पुरवा देवापसिया निवासी साबिर अली की 38 वर्षीय पत्नी वर्षों पहले बीमार हुई तो उसका इलाज भग्गड़वा बाजार स्थित एक बंगाली क्लीनिक पर कराया गया, जहां से उसके बांये हाथ में संक्रमण हो गया। कुछ और समय बीतने पर संक्रमण बांये पैर को भी चपेट में ले लिया। मेडिकल कालेज में महिला का हाथ व पैर के आगे का हिस्सा काट दिया गया। इलाज के दौरान पैसे के अभाव को पूरा करने के लिए पति साबिर ने गन्ना लगा एक बीघा खेत भी मौजूदा ग्राम प्रधान श्रीपाल के पास गिरवी रख दिया, जिसे बाद में दोगुना पैसा चुकाकर मुक्त करवाया। पत्नी के ठीक होने के बाद दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करवाने के लिए तमाम शिकायती पत्र दिये, मगर नतीजा शून्य ही रहा। अब पूरा परिवार केवल सरकारी गल्ले पर ही निर्भर है। आरोप है कि कोटेदार उसके हिस्से का गल्ला कम तोलकर देता है। अब महिला दिव्यांग पेंशन के लिए अपना आवेदन करके दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है।
    इसी गांव की शहनाज पुत्री लियाकत (7 साल) पहले एक ट्रैक्टर की चपेट में आकर अपना पैर गंवा चुकी है। तमाम दौड़ भाग के बाद उसका दिव्यांग प्रमाणपत्र तो बन गया पर किसी भी प्रकार की सरकारी सहयता नहीं मिल सकी। बेटी के भविष्य को लेकर परिजन चिंतित हैं। वहीं हाथ-पैर गंवा चुकी आमिना ने स्थानीय कुछ लोगों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मेरा परिवार कई वर्षों तक एक जून की रोटी खाकर गुजारा करता रहा। कई वर्षों तक सरकारी राशन भी नहीं मिल सका। अभी कुछ दिनों से उसे राशन तो मिलता है, पर बहुत ही कम मात्रा में। पेंशन के लिए जिम्मेदार उसे दुत्कारते रहते हैं।
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