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पुलिस बल के प्रति लोगों का बढ़ता हिंसक जनाक्रोश

ब्यूरो चीफ: गिरवर सिंह

झांसी:वांछित अभियुक्तों की गिरफ्तारी, माल बरामदगी एवं अन्य विभागीय दायित्वों के निर्वहन के लिये गये पुलिस दल के साथ  असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसात्मक घटना किया जाना गम्भीर चिंता का विषय है l
 अंग्रेजी शासन में  पुलिस का बहुत दबदबा था उस दौरान भी पुलिस बल के साथ हिंसात्मक घटनाओ का उल्लेख मिलता है l आज़ादी के बाद  इस प्रकार की घटनाएं जिले में यदा कदा ही होती थी l परन्तु पिछले कुछ वर्षों में पुलिस  दलों के साथ हिंसात्मक  घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई हैlपुलिस कर्मियों के साथ किये गये हिंसात्मक व्यवहार से
 पुलिस कर्मियों का मनोबल तो गिरता ही है उनका परिवार भी बहुत व्यथित होता है lइससे सामाजिक सुरक्षा  प्रभावित होती है तथा असामाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ता है ये किसी भी सभ्य समाज के लिये शुभ लक्षण नहीं है l इन हिंसक घटनाओं में महिलाओं ,किशोरों एवं युवाओं की उपस्थिति अत्यधिक विचलित कर देने वाली है l पुलिस के विरुद्ध निरन्तर  बढ़ती जा रही हिंसात्मक घटनाओं  के कारण जानने  एवं उसके समाधान के लिये पुलिस अधिकारियों  द्वारा  चिन्तन मनन करने की  आवश्यकता है l जनप्रतिनिधियों, समाज के अग्रणी नागरिको, तथा सामाजिक संगठनो को भी इस समस्या के निराकरण के लिये अपने दायित्व से विमुख नहीं
होना चाहिये l पुलिस विभाग में सेवा कर रहे लोग हमारे इसी समाज  एवं हमारे परिवारों के ही  सदस्य हैं उनके साथ अमानवीय एवं हिंसक व्यवहार  विधि अनुसार दंडनीय होने के साथ साथ सामाजिक रूप से निंदनीय भी है l इस समस्या के कारणों की पड़ताल तथा निदान के प्रयास मुख्य रूप से पुलिस के उच्च अधिकारियों को ही करने  होंगे l किसी भी लोकसेवक की सबसे बड़ी शक्ति उसका उच्चस्तरीय दायित्व बोध, कर्तव्यपरायणता की भावना, निष्पक्षता ,सामान्य जन के साथ मित्रवत मृदु व्यवहार है l पुलिस कर्मियों में तो इन सद्गुणों का होना बहुत आवश्यक है l संचार माध्यमों एवं सोशल मीडिया से लैस आज के दौर में पुलिस कर्मियों द्वारा आम नागरिकों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार को स्वीकार नहीं किया जा सकता l पुलिस के विरुद्ध आक्रोश का आधार शुरू से ही उसकी छवि अच्छी न होना है ,सामान्य जन के साथ पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार करने की आम शोहरत होना समस्या का मुख्य कारण है lपुलिस का अच्छा जनसंपर्क अनेक समस्याओं से बचाव करता है l पुलिस और समाज के बीच की दूरी कम हुए बिना समाधान सम्भव  ही नहीं है इस के लिए कुछ कारगर प्रयास किये जा सकते हैं उदाहरण के लिये थानों पर एक  अच्छी लाइब्रेरी जनसहयोग से बनाई जा सकती है उसमें विद्यार्थियों को विशेष रुप से आमंत्रित किया जाये,  थाना क्षेत्र में किसी परिवार में मृत्यु होने पर कोई पुलिस कर्मी उनके दुःख में भागीदारी के लिये चला जाये l किसी असहाय बीमार को थाना पुलिस द्वारा अच्छे चिकित्सक को दिखाना , कुछ निर्धन विद्यार्थियों को स्कूल फीस एवं किताबे आदि दिलाने में सहायता करना ,शिक्षा सत्र के प्रारंभ में पुलिस अधिकारी द्वारा  अपने क्षेत्र के स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देना ,यदा कदा प्रातः स्कूल  असेम्बली में शामिल होना भी प्रभावी एवं उपयोगी होगा l इस प्रकार के संकल्प से सब मार्ग खुल जाएंगे l बिद्या बर्ण शर्मा सेबा नि0 पुलिस उपाधीक्षक द्वारा   अपने पुलिस सेवा के दौरान विभिन्न थाना क्षेत्रों में  इस प्रकार के अनेक प्रयोग किये हैं जिससे अपराध नियंत्रण, एवं  शान्ति व्यवस्था स्थापित करने का मार्ग बहुत सुगम हुआ l कोरोना महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के पुलिस  अधिकारियों और कोतवाली मऊ रानीपुर में पदस्थय इंस्पेक्टर  शैलेन्द्र सिंह अपने स्टाफ व अनेक जनपदों के पुलिस  कर्मियों द्वारा विभागीय दायित्वों के अलावा उच्चस्तरीय मानवीय कार्य किये जा रहें हैं ये बहुत सुखद अनुभूति है l 
जनसम्पर्क बढ़ाने के साथ विभागीय दक्षता भी अति आवश्यक है l
   अभियुक्तों की गिरफ्तारी  के लिये भेजते  समय  फोर्स को उचित दिशा निर्देश  क्या करना है क्या नहीं करना है स्पष्ट समझा देना आवश्यक है l पुलिस बल पर्याप्त होना चाहिये l लापरवाही एवं ओवर कांफिडेंस में उचित होमवर्क किये बिना अभियुक्तों की  गिरफ्तारी के लिये जाना हितकर नहीं है l कानपुर के बिकरू हत्याकाण्ड जिसमें अनेक पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी गईं थी , के बाद आशा की जा रही थी अब अवश्य पुलिस के विरुद्ध हिंसात्मक घटनाओं में  कमी आएगी परन्तु ऐसा नहीं हुआ कानून के रखवालों की जान ,मान सम्मान ही यदि ख़तरे में रहेगा तो समाज का आमनागरिक किसके भरोसे रहेगा l
प्रायः देखने मे आता है बहुत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील ड्यूटी के दौरान भी बहुत से  पुलिस कर्मी मोबाइल फ़ोन पर व्यस्त रहते हैं तथा विषम परिस्थितियों में पार्टी इंचार्ज अकेले  पड़ जाता है इस  लापरवाही पर भी नियंत्रण आवश्यक है l 
उत्तेजित लोगों द्वारा अक्सर पूछताछ के लिये थाने पर लाये गये व्यक्ति को छुड़ाने के उद्देश्य से भी भीड़ द्वारा थाने पर हमलावर होने की घटनाएं  प्रकाश में आती रहती हैं, इसका मूल कारण है  जनता के मन में पूछताछ के लिये लाये गये व्यक्ति के साथ पुलिस द्वारा मारपीट किये जाने का भय बना रहना , उनकी इस शंका को पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता l
कुल मिलाकर हमारी पुलिस की कार्यप्रणाली अधिकांशत:  संदेह के घेरे में रहती है ये स्थिति किसी भी रूप से उचित नहीं है, पुलिस की रोजमर्रा की कार्यप्रणाली में जनता विश्वास करे ये उपाय भी किये जाने की महती आवश्यकता है l
 थानों की  नियमित कार्यवाही पारदर्शी किये जाने की ओर सच्चे मन से प्रयास किया जाना चाहिये l
थानों के प्रवेश द्वार, थाना कार्यालय, हवालात के बाहर- भीतर , थानाध्यक्ष व थाना स्टाफ़ के बैठने के स्थान पर CCTV कैमरे लगने चाहिए तथा 24 घण्टे की रिकॉर्डिंग का अवलोकन उच्च अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिये l  समस्त छोटे बड़े पुलिस अधिकारियों के कार्यालयों  एवं सरकारी गाड़ियों पर भी हाई पावर CCTV कैमरे लगाने से
बहुत लाभ होगा l इस उपाय से भीड़ द्वारा  पुलिस अधिकारियों के कार्यालयों ,थानों तथा क्षेत्र में गये पुलिस बल पर असामाजिक तत्वों द्वारा हमलावर होने की प्रव्रत्ति पर भी निश्चित रुप से अंकुश लगने के साथ साथ पुलिस कर्मियों के कार्य एवं व्यवहार में भी गुणात्मक परिवर्तन आयेगा l
 मात्र दोषारोपण किसी समस्या का समाधान नहीं है l इसके लिये सत्य निष्ठा से सम्पूर्ण पुलिस विभाग को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे l
   "जुबां तो कहती है सारा कसूर उसका है,
  ज़मीर कहता है जिम्मेदार मैं भी हूँ"


        संचार24 न्यूज के लिए झांसी से  की रिपोर्ट

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