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मनकापुर संचार विहार में आयोजित की गई काव्य -सन्ध्या

राकेश श्रीवास्तव

मनकापुर गोण्डा:केंद्रीय विद्यालय आईटीआई मनकापुर में रहे शिक्षक एवं छंदों के महान साहित्यकार  ईश्वर चन्द्र मेंहदावली के सेवानिवृत्ति के अवसर पर आवास संख्या B - 42 में 1 दिसंबर 2021 दिन बुद्बवार शाम को एक काव्य-सन्ध्या आयोजित की गयी। 



अभी कुछ दिनों पहले हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित डॉ सतीश आर्य की अध्यक्षता में हुई इस काव्य-सन्ध्या की शुरूआत सभी कवियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर की गई। माँ वाणी की वंदना एवं संचालन कवि ईश्वर चन्द्र मेंहदावली ने प्रस्तुत किया। 


कवि राम हौसिला शर्मा ने पढ़ा- कभी-कभी आ जाना गांव।

है पथिक तुम्हारे पथ का अनुगामी हूँ। आकांक्षा बस पुनः कुटी में पड़े आपके पांव। कभी -कभी आ जाना गांव। 


कवि एवं मीडिया प्रभारी राम लखन वर्मा ने पढ़ा- नही लालसा धन दौलत की। नही इन्हें अपमान चाहिए। ये खुद में सम्पूर्ण जगत हैं। इनको बस सम्मान चाहिए।



 कवि सुधांशु वर्मा ने पढ़ा- 

तुम हंसों इस तरह फूल झरने लगे।

तुम जिओ जिंदगी इस तरह हिम पिघलने लगे। कवि वृजराज श्रीमाली ने पढ़ा- मन दर्पण में दर्शन अभी अधूरा है। चिन्ता तो है चिंतन अभी अधूरा है। 


कवि ईश्वर चन्द्र मेंहदावली ने पढ़ा- 'ईश्वर' पैदल चाल बनाये सबको पाठा। हंसू हंसायूँ नित्य रहूं साठा का साठा।


मनकापुर से पधारे हुए मुकेश कुमार कनौजिया ने अपनी बात कहते हुए कहा- जीवन है जीने के लिये। अपने गुरुओं मात-पिता के सम्मान बिना। जीवन जीना होता है अधूरा।


 डॉ सतीश आर्य ने अपनी अध्यक्षीय कविता इस तरह पढ़ी - एक सांस में पीर गिनूं तो गिनती मेरे पास नही है। गिन सकने की बात करूं तो उतनी मेरी सांस नही है। 


इनके अलावा अन्य कवियों ने भी अपनी रचनाएं पढ़ी। काव्य-सन्ध्या के अवसर पर केंद्रीय विद्यालय के सीनियर PGT शिक्षक खान साहब भी उपस्थित रहे। 


इस काव्य सन्ध्या में उपस्थित श्रोताओं ने दोहे, छंदों, गीतों एवं गजलों का भरपूर आनंद लिया।

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