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वृद्धाश्रम में बढ़ती बूढ़ी माताओं की संख्या समाज के लिए चिंताजनक



वृद्धाश्रम में रहकर अपनों के लिए दुआएं करती हैं वृद्ध माताएं

 विनय तिवारी

प्रतापगढ़: जब नवजात शिशु इस दुनिया में आता है तो सबसे ज्यादा खुशी माँ को होती है जैसे मानो की दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ उन्हें मिल गयी हो.


माँ अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है| मनुष्य में ही नहीं हर प्रकार के जीव जंतु में यही होता है| अगर बच्चे पे आंच आने वाली होती है तो माँ स्वयं सबसे पहले आगे आ जाती है।


माँ अपने बच्चो के भविष्य के लिए सबसे अधिक चिंतित रहती है और कहीं प्यार से तो कहीं डॉट से उसके भविष्य को संवारने में लगी रहती है।


 लेकिन आज हमारे समाज में जिस तरीके से वृद्धा आश्रम में वृद्ध माताओं की संख्या बढ़ती जा रही है इससे हमें और हमारे समाज को गहन विचार की ज़रूरत हैं।  


हम जिस तरीके अपनी आध्यात्मिकता को भूलकर पश्चिम की सभ्यता को अपनाकर  आगे बढ़ रहे हैं,इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमे आने वाले समय में कोई भी शक्ति हमें विनाश से बचा सकती हैं।


 हमें पढ़े लिखे होने और व्यस्त होने का ढोंग जो रच रहे हैं उससे हमारे मूल संस्कारों पर एक प्रश्न चिन्ह लगता है। भारत भूमि में गाय भी माता है तो जीवन प्रदान करने वाली नदिया भी माता है पर आधुनिकता की दौड़ में हमने इन सभी संस्कारों को भुला दिया हैं। 


प्रश्न सिर्फ हमारे संस्कारों का नहीं है बल्कि हमारे अपने कर्त्तव्य का भी हैं, क्या जिस प्रकार से एक मां बच्चे का मल मूत्र की सफाई से लेकर उसके साफ सुथरे कपड़े तक ध्यान रखती हैं और बीमारी में रात भर जाग कर उसका देख भाल करती है , क्या उन्हे उनके दुर्बल समय में उन्हे अकेला किसी अन्य के साथ छोड़ देना उचित हैं?


पाकीज़ा फिल्म की मशहूर अभिनेत्री गीता कपूर जी का वृद्धाश्रम में निधन स्तब्ध कर देने वाला थाऔर ऐसे न जाने कितनी माए हैं जिन्हे ये कठोर पीड़ा से गुजरना होता है।  


दिन प्रतिदिन समाज में बढ़ती विद्या आश्रम की संख्या और उसमें बढ़ती वृद्ध  माताओं की संख्या पर गंभीर रूप से विचार किए जाने की जरूरत है । समाज को इस बदलाव को रोकने में आगे आना होगा। 


स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था सनातन धर्म में तो माता-पिता को सबसे ऊंचा दर्जा प्राप्त है। देवताओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले गणेश तक ने अपने माता-पिता के चारों ओर चक्कर लगाकर उन्हें पूरा संसार कहा था, लेकिन आज की पीढ़ी मंदिरों में उसी गणेश की पूजा करती है और माता-पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ती है। 


पश्चिमी सभ्यता के चक्कर में हम संस्कार भूलते जा रहे हैं। ऐसे में हम अपनी पीढ़ी को क्यों कुसंस्कारित कर रहे हैं।  शहरों में बहुत ही तेजी से वृद्धाश्रम खुल रहे हैं। 


हम सब प्रण ले की समाज में बढ़ते हुए इस कुसंस्कृत कृत्य को रोकने के लिए जो भी प्रयास हो सकेगा हम वो करेंगें।

ध्यान रखें की :- मां का ऋण कैसे चुकाना है ये किसी भी वेद में उल्लेखित नहीं है।

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