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पलियाकलां:शहीदी दिवस पर याद किए गए गुरु तेग बहादुर सिंह



आनंद गुप्ता 

पलिया कलां खीरी :सरस्वती विद्या  मन्दिर इण्टर कॉलेज पलिया में गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि दी गई उनके इस शहीदी प्रकाश पर्व पर पलिया क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हरविन्दर पाल सिंह नन्नर  मुख्य अतिथि के रूप में रहे। 


जिन्हें प्यार से हम सभी स्वीट भाई साहब कह करके बुलाते हैं।  वन्दना के पश्चात अतिथि परिचय प्रधानाचार्य वीरेन्द्र वर्मा ने कराया। विद्यालय के प्रबन्धक राम बचन तिवारी ने मुख्य अतिथि को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया। 

इस पवित्र कार्यक्रम का सञ्चालन विद्यालय की बहन शीतल सिंह, बहन मुस्कान, एवं बहन आंचल सैनी ने किया। 


मां के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं गुरु तेग बहादुर सिंह के चित्र पर पुष्पार्चन आदि के पश्चात बहन सौम्या तिवारी ने सलाम उन शहीदों को गीत प्रस्तुत किया। 


प्रिंस पाठक ने आंग्ल भाषा में वक्तव्य दिया हनु मिश्रा ने संस्कृत गीत प्रियम भारतम प्रकृत्या सुरम्यम सोना गुप्ता ने ओ देश मेरे तेरी शान पे सदके गीत प्रस्तुत किया। 


श्रद्धा सिंह एवं शौर्य शुक्ला ने भी गुरु तेग बहादुर जी के जीवन की शिक्षाओं पर आधारित अपने विचार रखे। मुस्कान ने कौन सा मंत्र जपूं मैं भगवन के पश्चात वैष्णवी ने मनमोहक गीत दुनिया अगर रहे तो रहे, प्यार की दुनिया प्रस्तुत किया। 


जसवीर कौर ने पंजाबी भाषा में गुरु तेग बहादुर सिंह जी की शिक्षाओं पर आधारित एक गीत जुर्म नईं करना जुर्म नईं सैना अपने पारम्परिक परिधान में प्रस्तुत किया जो काफी सराहा गया। 


मुख्य अतिथि ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हम सभी के स्मरण में आए इस उद्देश्य से ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है।


जब औरंगजेब ने कहा कि मैं किसी  को जनेऊ पहनने नहीं दूंगा तब सिखों के नवम गुरु तेग बहादुर जी ने कहा था अपने जीते जी मैं किसी का जनेऊ उतरने नहीं दूंगा।  


इसलिए उन्हें हम आज भी हिन्दुत्व के संरक्षक, संस्कृति के संवाहक, हिन्द की चादर अर्थात भारत की ढाल के रूप में जानते हैं। ऐसे कार्यक्रम आप सभी भैया बहनों के लिए बहुत ही आवश्यक है इन कार्यक्रमों के माध्यम से हमारे अंतस में भारत की अद्वितीय संस्कृति विद्यमान रहती है और शिक्षा ही ऐसा साधन है जिसके द्वारा यह संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होती रहती है। 


अपने देश ही नहीं विदेशों में भी ऐसे संस्थान हैं जो शिक्षा के लिए तो बहुत ही अच्छे माने जाते हैं।  परंतु संस्कृति और संस्कार के संवहन करने में सरस्वती शिशु मंदिर/ विद्या मन्दिरों का कोई विकल्प नहीं है।  


विद्यालय की वन्दना व्यवस्था, यहां का अनुशासन, कार्यक्रम के सहभागी एवं सञ्चालन के माध्यम से भैया बहनों के विचार, आचार्यों की लगन एवं संस्थान के प्रधानाचार्य की विद्यालय के प्रति अटूट निष्ठा से काफी प्रभावित हूं। गुरु तेग बहादुर सिंह जी का पूरा परिवार उनका बेटा, पौत्र सभी इस देश, धर्म और संस्कृति पर शहीद हो गए। 


 प्रबन्धक ने भैया बहनों को सम्बोधित करते हुए कहा गुरु तेग बहादुर सिंह जी का पूरा जीवन त्यागमयी संस्कृति का संवाहक था। उनके सात वर्ष के बालक गोविन्द राय ने उन्हें शहीद होने की प्रेरणा दी। आज अगर गुरु गोविन्द सिंह और उनके पूज्य पिता गुरु तेग बहादुर सिंह जी का देश धर्म संस्कृति पर बलिदान न होता तो आज हम सभी की स्थिति का आंकलन लगाना:सम्भव न था। 


इसलिए उन्हें हम हिन्द की चादर अर्थात हिन्दू संस्कृति का सुरक्षा कवच कहते हैं।  आज के कार्यक्रम में सहभागी भैया बहनों को शुभ कामनाएं दीं, आए हुए अतिथि स्वीट भाई का धन्यवाद ज्ञापित किया था। कार्यक्रम में धैर्य  रखने के लिए भैया बहनों की सराहना की।

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