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....वतन जिंदा रहे जिंदा रहे,बुलंदी पर हमारे मुल्क का झंडा रहे हरदम


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कुलदीप तिवारी 

लालगंज-प्रतापगढ़। हज़रत मौलाना अतीक साहब की याद में एक कुल हिन्द मुशायरा खानापट्टी चौराहे पर आयोजित किया गया।


रात्रि दो बजे तक चले इस मुशायरे में श्रोताओं ने सर्द रात में भी पूरी ज़िंदादिली का सुबूत दिया। मुशायरे की सदारत मौलाना रहमानी साहब ने और निज़ामत क़ासिम हुनर सलोनी ने किया।

शकील फूलपुरी के नाते पाक से मुशायरे का आग़ाज़ हुआ। उन्होंने पढ़ा- खूबसूरत लिबास है लेकिन, जिस्म नंगा दिखाई देता है। फलक सुल्तानपुरी ने अपनी दिलकश आवाज़ से मुशायरे में जान फूँकी उन्होंने पढ़ा-हया की वादियों में, शर्म के आँगन में रहती हूँ।

मैं उर्दू हूँ सदा तहज़ीब के दामन में रहती हूँ। अदब के नामचीन शायर ख़ुर्शीद अम्बर ने बेहतरीन शाइरी पेश की उन्होंने पढ़ा- अज़ान अच्छी नहीं लगती, भजन अच्छा नहीं लगता, बुरे लोगों को पाकीज़ा चलन अच्छा नहीं लगता। 


शाइर डॉ. अनुज ने तो पूरी महफ़िल ही लूट ली, उन्होंने पढ़ा- जहाँ में नाम हिंदुस्तान का ऊँचा रहे हरदम, बुलंदी पर हमारे मुल्क का झंडा रहे हरदम, भले हम जांनिसारों का निशाँ मिट जाए दुनिया से, वतन ज़िन्दा रहे, ज़िन्दा रहे, ज़िन्दा रहे हरदम। 


अवधी के सशक्त रचनाकार आचार्य अनीस देहाती ने अवधी का रंग जमाया। उन्होंने सुनाया, मेल मुहब्बत, दुआ बंदगी अस गायब भै पांडे, वह देखा अब्दुल्लउ चच्चा खसकेन आड़े-आड़े। 


क़ौमी यकजहती के प्रतीक फ़ैयाज़ परवाना ने सुनाया- दोस्तों अपनी मैली ये गंगा न हो, गर्दिशों में हमारा ये तिरंगा न हो, तो लोगों में जमकर इस्तकबाल किया। 


प्रयागराज की धरती से आये आमान सैयद फ़ाक़ाकश की शाइरी लोगों के जज़्बात को झिंझोड़ती नज़र आयी उन्होंने सुनाया- इस डर से कहीं मुझको सज़ा लें न ताज पर, मैं सीपियों में रह गया गौहर नहीं बना। 


हाजी ख़लील फरीदी रायबरेलवी का जादू सर चढ़कर बोलता नज़र आया, उन्होंने पढ़ा- उधर तुम जलाओ इधर हम जलाएं,

दिये ही दिये हर तरफ़ जगमगाएं, मिले छाँव अपने पराये सभी को, मोहब्बत के ऐसे शजर हम लगाएं।


डॉ. आफ़ताब जौनपुरी की ग़ज़लों ने लोगों को अपना दीवाना बना लिया, उन्होंने पढ़ा- तुम गले रस्मन मिला करते हो मुझसे आजकल, गर मुहब्बत है तो दिल से दिल मिलाना चाहिए।


 निज़ामत कर रहे क़ासिम हुनर ने पढ़ा- मुफ़्तख़ोरी का बनाओगे सभी को आदी, किसी मज़दूर को तुम काम नहीं देने के। नफ़ीस अख़्तर सलोनी ने सुनाया- मुझको छोड़ोगे तो बुझ जाओगे तुम, बल्ब जलता है कहीं एक तार से। दिलशाद राही ने सुनाया- मैं दोस्ती के ही माहौल में रहा हूँ मैं, मुझे पता ही नहीं है कि दुश्मनी क्या है।


कार्यक्रम की शुरुआत में सीनियर एडवोकेट ज्ञानप्रकाश शुक्ल ने सभी शायरों का खैरमकदम किया और आज के टूटते बिखरते रिश्तों पर चिंता जताते हुए क़ौमी यकजहती पर बल दिया। 


चैयरमैन प्रतिनिधि ने शायरों का सम्मान किया। बी. यन. सिंह ने शायरों को अंगवस्त्र भेंट किया। मुशायरे के सरपरस्त हाजी सैयद शफ़ीक़ में सभी शायरों का आभार जताया और इस मुशायरे की हर साल आयोजित करने का ऐलान किया। 


इस मौके पर इरशाद भाई, बेलाल रहमानी, अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अनिल त्रिपाठी महेश, डॉ. बच्चाबाबू वर्मा, डॉ. आशुतोष त्रिपाठी,  आसिफ अली, इकबाल खान, ज़ाहिद खान, मो. खालिद, मुहम्मद अली समेत सभी लोग देर रात तक जमे रहे।

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