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बलरामपुर:महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती पर गोष्ठी का आयोजन



अखिलेश्वर तिवारी 

  जनपद बलरामपुर में 16 फरवरी को शहर के अग्रेंजी माध्यम विद्यालय पॉयनियर पब्लिक स्कूल एण्ड कॉलेज में ‘‘महर्षि दयानंद सरस्वती‘‘ की जयन्ती मनायी गयी। विद्यालय के प्रबन्ध निदेशक डा0 एम0पी0 तिवारी ने महर्षि दयानंद के चित्र पर माल्यापर्ण करके द्धीप प्रज्जवलित किया । उन्होंने विद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं को बताया कि महर्षि दयानंद सरस्वती अपने महान व्यक्तित्व एवं विलक्षण प्रतिभा के कारण जनमानस के ह्रदय में विराजमान है, जिन्होनें देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, विभिन्न प्रकार के आडंबरो व सभी अमानवीय आचरणों का विरोध किया। हिंदी को राष्ट्रभाष के रूप में मान्यता देने तथा हिंदू धर्म के उत्थान व इसके स्वाभिमान को जगाने हेतु स्वामी जी के महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारतीय जनमानस सदैव ऋणी रहेगा। महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म सन् 1824ई0 को गुजरात प्रदेश के मौरवी क्षेत्र में टंकरा नामक स्थान पर हुआ था। स्वामी जी का बचपन का नाम मूल शंकर था। इनके द्वारा स्थापित दयानंद विद्दयालय व विश्वविद्यालयों ने वैदिक धर्म व हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार मे विशेष योगदान दिया। ये आर्यसमाज के संस्थापक थे जिसकी हजारों की संख्या मे शाखाएँ देश-विदेश में आज भी फैली हुई है तथा भारतीय संस्कृति व सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। ‘‘महर्षि दयानंद सरस्वती‘‘ के जन्मदिवस पर विद्यालय में अध्यापक अध्यापिकाओं एवं छात्र-छात्राओं का एक गोष्ठी का आयोजन किया । गोष्ठी में सभी अध्यापक अध्यापिकाएं एवं छात्र-छात्राओं ने पुष्प अर्पित करके महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्मोत्सव मनाया ।जन्मदिवस के अवसर पर विद्यालय के प्रबन्ध निदेशक डा0 एम0पी0 तिवारी ने गोष्ठी में बताया कि महर्षि दयानंद सरस्वती एक युग पुरूष थे। उनका संपूर्ण जीवन तप और साधना पर आधारित था। उन्होंने वैदिक धर्म व संस्कृति के उत्थान के लिए जीवन पर्यन्त प्रयास किया। विदेशी दासत्व से भारतीय जनमानस को मुक्त कराने हेतु उनका प्रयास सदैव स्मरणीय रहेगा। हिंदी भाषा को मान्यता व सम्मान प्रदान करने हेतु उनके प्रयासों को राष्ट्र कभी भी भुला नहीं पायेगा। इस अवसर पर उप प्रधानाचार्य आशुतोष पाण्डेय, संतोष श्रीवास्तव, शिखा पाण्डेय अध्यापकगण राघवेन्द्र त्रिपाठी (एक्टीविटी इंचार्ज) सहित समस्त अध्यापक अध्यापिकाएं तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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