अशफाक आलम
बभनजोत गोंडा:मूल रूप से कस्बा राजा अशरफ बक्श गोंडा जिले के परगना बुढ़ापार की रियासत थी जो विश्व की नदी और कुआनो नदी के बीच में फैली हुई थी इनका निवास स्थान बभनजोत ब्लॉक के ग्राम पंचायत कस्बा खास में है और बगल में ही इनका कोर्ट भी स्थित था ।
गोंडा के महाराजा देवी बक्श सिंह के आह्वान पर 1857 की लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ी जंग
राजा अशरफ बख्श गोंडा के राजा देवी बक्श सिंह के बहुत करीबी थे 1857 की जंग अवध क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण थी अंग्रेजों ने अवध प्रांत जीतने का भरपूर प्रयास किया लेकिन इस प्रांत में राजाओं ने मिलकर अंग्रेजों को लोहा मनवाया और सरयू नदी के उत्तर मोर्चा बनाकर लड़ते रहे l
राजा अशरफ बख्श ने युद्ध क्षेत्र लामती लोलपुर में अपने सैनिकों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध संभाला मोर्चा
1857 की क्रांति में राजा अशरफ बक्श अपने जानिसार सैनिकों के साथ अयोध्या के लंपी लोलपूर में पहुंचे जहां उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए कई दिनों तक लड़ते रहे अंग्रेज सेनापति जनरल देशी राजाओं की बहादुरी देख चिंतित हो गया था l
अंग्रेज जनरल होप ग्रांट ने देशी राजाओं की बहादुरी देखकर फूट डालो राज करो की नीति अपनाई
अयोध्या से उत्तर सरयू नदी किनारे लंबी लालपुर नामक स्थान पर जब स्थानीय राजाओं द्वारा अपने सैनिकों के साथ मोर्चा संभाले हुए थे तो अंग्रेज जनरल होप ग्रांट में एक तरकीब निकाली 'फूट डालो और राज करो ' जिसके फलस्वरुप अयोध्या राजा मानसिंह तथा कृष्ण दत्त पांडे जिन्हें तोपों के लिए गोली सप्लाई करने की जिम्मेदारी सौंप गई थी उन्होंने भितरघात कर बालू भरकर सप्लाई कर दिया इसके कारण राजा अशरफ बक्स को मैदान से पीछे हटना पड़ा l
अशरफ बख्श की नवाबगंज के होलापुर तालिब गांव में अंग्रेजों ने घेर कर उनके घर में लगा दी आग
27 दिसंबर 1857 से 6 दिन तक चले इस युद्ध में राजा अशरफ बख्श मैदान से पीछे हटे तो होलापुर गांव में खुदा बख्श के यहां शरण ली लेकिन किसी ने उनके छिपे होने की मुखबिरी अंग्रेजों से जाकर कर दी जिसके बाद अंग्रेजों ने पूरे गांव को घेर लिया और एक एक घर की तलाशी लेकर जिस मकान में अशरफ बख्श छिपे थे उसमें आग लगा दी और उसी घर में जलकर वह शहीद हो गए l
इस अमर शहीद की शहादत पर न तो किसी नेता ने और न ही सरकार ने दिया ध्यान
राजा अशरफ बख्श की गोंडा जिले के परगना बूढ़ा पायर की रियासत थी l बभनजोत ब्लॉक के ग्राम कस्बा खास में उनका निवास स्थान था और उसके बगल में उनकी कोर्ट भी थी लेकिन अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते वह नवाबगंज ब्लॉक के होलपुर गांव में जाकर शहीद हुए उनकी वही मजार भी बन गई है l गांव वालों के मुताबिक 1992 तक 18 मार्च को प्रशासन बैंड बाजे की सलामी देता था किंतु उसके बाद से यह परंपरा बंद हो गई अब गांव वाले ही चादर चढ़ा कर चिराग जलाकर परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं जबकि कस्बा खास राजा के वंशज गरीबी में मेहनत मजदूरी करके किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं और उनके घर खंडहर और कोर्ट कूड़ा घर के ढेर में तब्दील हो गया है l
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