इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र अच्युत त्रिपाठी की मौत ने सबको झकझोर दिया। होटल के कमरे में संदिग्ध हालात में मिली लाश, दोस्त हिरासत में, मामला हत्या या आत्महत्या, पढ़िए इंसानी एहसास से जुड़ी पूरी स्टोरी।
"अच्युत की आखिरी रात: जब दर्द ने शब्दों से आगे छलांग लगा दी"
प्रयागराज।शब्दों से प्यार करने वाला एक छात्र, जो हिंदी साहित्य में एमए कर रहा था, एक दिन खुद ही शब्दों से परे चला गया। वो जो किताबों में कविताएं ढूंढता था, शायद अपने दर्द को किसी कविता में कह नहीं पाया, और जब पाया, तो देर हो चुकी थी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डायमंड जुबली छात्रावास में रहने वाला छात्र अच्युत त्रिपाठी अब इस दुनिया में नहीं है। शनिवार की रात वह अपने दो दोस्तों के साथ प्रयागराज के कोहड़ार इलाके में एक होटल गया। किसी को क्या पता था कि यह उसकी जिंदगी की आखिरी रात होगी।
रात करीब एक बजे उसने अपने चचेरे भाई को एक व्हाट्सएप मैसेज भेजा, जिसमें होटल की लोकेशन और एड्रेस था। साथ ही एक छोटा-सा निवेदन, "जितनी जल्दी हो सके आ जाना।"
यह संदेश एक सिसकती हुई पुकार थी... जो शायद मदद मांग रही थी।
मदद पहुंची... लेकिन बहुत देर से।
जब चचेरा भाई होटल पहुंचा तो देखा कि अच्युत के दोस्त कमरे के बाहर खाना खा रहे थे, और कमरा अंदर से बंद था। शक हुआ। पुलिस बुलाई गई। दरवाजा तुड़वाया गया।
कमरे के अंदर का मंजर.शब्दों से बाहर था।
पंखे से लटकता हुआ अच्युत, कमरे में सन्नाटा था, लेकिन उसकी चुप्पी हजार सवाल छोड़ गई।
परिवार की नजर में यह आत्महत्या नहीं, हत्या है।
अच्युत के बड़े भाई जनार्दन त्रिपाठी, जो फतेहपुर में भाजपा के नगर महामंत्री हैं, ने दोनों दोस्तों पर हत्या का आरोप लगाया है। पुलिस ने एक को हिरासत में लिया है, दूसरा अब भी फरार है।
कमरा अंदर से बंद था, कैमरा भी।
फॉरेंसिक टीम और डॉग स्क्वाड ने होटल का कोना-कोना खंगाला। फिंगरप्रिंट लिए गए। डीसीपी विवेक चंद्र यादव के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हैंगिंग की पुष्टि हुई है। लेकिन सवाल अभी भी हवा में हैं
क्या यह आत्महत्या थी? या कोई रची गई स्क्रिप्ट?
दिल को तोड़ देने वाली बात यह भी है कि अच्युत ने अपनी गर्लफ्रेंड को भी आखिरी बार मैसेज किया था।
मैसेज में क्या था, पुलिस नहीं बताती। लेकिन इतना ज़रूर माना जा रहा है कि उनके बीच कुछ ऐसा घटा जो अच्युत को भीतर से तोड़ गया।
अच्युत कोई आम छात्र नहीं था।
वो कविताओं का प्रेमी था, साहित्य का जिज्ञासु था, उस विश्वविद्यालय का छात्र था जहां शब्दों की ताकत सिखाई जाती है। लेकिन शायद वो इस दुनिया की उस 'चुप्पी' से हार गया जिसे कोई सुन नहीं पाया।
अब अच्युत के जाने के बाद रह गया है, एक अधूरा चैप्टर, अधूरे सवाल और एक सन्नाटा।
पुलिस जांच कर रही है। परिजन न्याय मांग रहे हैं। और हम सबके सामने खड़ा है एक और सवाल, क्या आज की पढ़ी-लिखी पीढ़ी सचमुच अकेली होती जा रही है?
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