पं श्याम त्रिपाठी/बनारसी मौर्या
तरबगंज गोंडा:आज भी ठेंगड़ी जी का जीवन कई पीढ़ियों के कार्यकर्ताओं के लिए एक मार्गदर्शक है। उनका “स्वदेशी अपनाओ‑देश समृद्ध बनाओ” का नारा गाँव‑गाँव में गूँजता है, और उनके द्वारा स्थापित संगठन राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हैं। आज भी हम लोग स्वदेशी समान क्रय विक्रय सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। युक्त विचार विभाग सहसंयोजक घनश्याम जायसवाल ने कही।
खंड कार्यवाह जितेंद्र पांडे नगर कार्यवाह प्रभात रंजन, सिद्धांत नंदन जायसवाल सहित दर्जन भर लोगो श्राध्दा सुमन अर्पित किया। विभाग संयोजक मुकेश जायसवाल एवं सहसंयोजक घनश्याम जायसवाल ने संयुक्त रूप से बताया कि ठेंगड़ी जी को सामाजिक समरसता, आर्थिक स्वावलंबन और सांस्कृतिक जागरूकता के प्रचारक के रूप में याद किया जाता है। उनका जीवन आदर्श “स्वदेशी ही विकल्प” आज भी कई सामाजिक आंदोलनों में प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। देश‑सेवा में उनके अनवरत योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, परन्तु उन्होंने इसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया ।
दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म 10 नवंबर 1920 को महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के आर्वी में हुआ था। उनके पिता श्री बालाजी ठेंगड़ी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिससे बचपन से ही देशभक्ति और सामाजिक सेवा का बीज उनके मन में बोया गया छोटी उम्र में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष बन गये, जिससे उनका नेतृत्व‑गुण स्पष्ट हो गया।
1936‑38 के दौरान, ठेंगड़ी जी ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)में भाग लिया और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गये । 1942 में, जब भारत छोड़ो आंदोलन तेज़ हुआ, उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक के रूप में कार्यभार संभाला और केरल, बंगाल तथा असम में प्रान्त प्रचारक की भूमिका निभाई ।
आरएसएस में उनका योगदान केवल प्रचार तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई और बाद में भारतीय मजदूर संघ (BMS) की घोषणा 23 जुलाई 1955 को भोपाल में की । यह संगठन आज देश का सबसे बड़ा श्रमिक संघ बन चुका है। इतर, 1991 में उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की, जिसका उद्देश्य स्थानीय उद्योग, कारीगर और किसानों को आत्मनिर्भर बनाना था । साथ ही, उन्होंने भारतीय किसान संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसी कई जनसंगठनों को भी जन्म दिया। 1975‑77 के आपातकाल के दौरान, जब संघ पर प्रतिबंध लगा, ठेंगड़ी जी ने भूमिगत होकर लोक संघर्ष समिति के सचिव के रूप में लोकतंत्र की रक्षा के लिए निडरता से काम किया । उनका यह साहस और संयम आज भी प्रेरणा स्रोत है। ठेंगड़ी जी ने हमेशा स्वदेशी (स्वदेशी ही विकल्प) और तीसरा मार्ग की बात की। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है । उन्होंने पूँजीवाद और साम्यवाद दोनों को विदेशी विचारधारा मानते हुए “भारतीय मॉडल” का प्रस्ताव रखा ।


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