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गंगा में हजारों श्रद्धालुओं ने किया दीपदान, महाभारत कालीन प्रथा बदस्तूर जारी

 


सुनील गिरी 

उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड के गढ़मुक्तेश्वर में महाभारत काल से चली आ रही दीपदान की प्रथा अभी भी बादस्तुर चली आ रही है, यहाँ पहुँचने वाले श्रद्धालु अपने दिवंगतों की आत्मा की शांति के लिए हापुड़ के गढ़ गंगा में कार्तिक गंगा स्नान से एक दिन पूर्व को चतुर्थी पर दीपदान करने दूर दूर से यहां पहुचते है, जिसके बाद ये लोग अपने सगे संबंधी जो स्वर्ग सिधार गए है, उनकी याद में दीपदान करते है इस दोरान लोगों की आंखें भी भर आती है। इस परंपरा को निभाते वक्त गंगा घाट ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे आकाश से तारे धरती पर उतर आए हों। दीयों की रोशनी से गंगा घाट जगमगा उठा था, अलग अलग राज्यो से लाखो श्रद्धालु गढ़ गंगा में स्नान कर अपने दिवंगत परिजनों के नाम से दीपदान करने आये थे जिन्होंने अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए गंगा में स्नान कर दीपदान किया। 



आपको बता दे कि महाभारत के युद्ध में मारे गए हजारों सैनिक और असंख्य योद्धाओं की आत्मा की शांति के लिए भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों की मौजूदगी में सर्वप्रथम चतुर्दशी को दीपदान किया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मंगलवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु दीपदान के लिए घाट पर पहुंच गए थे। सूर्यास्त होते ही दीपदान का सिलसिला शुरू हो गया जो देर रात तक जारी रहा और बाद में धार्मिक अनुष्ठान करते हुए पिंडदान किया गया। अपनों के बीच से बिछड़ों की याद में दीपदान करते वक्त कुछ लोगो की उस समय आंखें भर आईं। दीयों की रोशनी में गंगा घाट नहाए हुए दिखे, जिससे घाट की छटा देखते ही बन रही थी। घाट पर पिंडदान की सामग्री तिगरी गंगा, गढ़ मेले के साथ ब्रजघाट में दीपदान को उमडने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ गंगा घाटों विशेष इंतजाम रहा। घाटों पर दीपदान की सामग्री लेकर ब्राह्मण मौजूद रहे। पूजा की सामग्री में पिंडदान, दीप, लौंग, बताशे, बांस की चटाई आदि सामग्री गंगा घाटों पर मौजूद थी, वहीं काफी श्रद्धालु अपने घरों से दीपक और घी आदि लेकर गंगा घाट पर पहुंचे थे।

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