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संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ:आचार्य निर्मल शरण जी महाराज श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन श्रीमद् भागवत कथा श्रीव्यास पूजन किया

वेद व्यास त्रिपाठी

प्रतापगढ़ महुली: मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है ।


तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। 


यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है। जीतलाल ऊमर वैश्य परिवार के सौजन्य से महुली बाजार में चल रही भागवत कथा के समापन पर आचार्य निर्मल शरण जी महाराज ने यह बातें कहीं।


श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन, श्रीमद्भागवत तथा श्रीव्यास पूजन किया। कथावाचक आचार्य निर्मल शरण महाराज ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। 


"पानी परात को हाथ छूवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोये।" भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे। 


उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती। 


कथा के मुख्य यजमान श्रीमती प्रभावती देवी व जीतलाल ऊमर वैश्य रहे।आचार्य ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 


आचार्य निर्मल शरण महाराज ने कहा कि 'स्व दामा यस्य स: सुदामा' अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। 


सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी, उन्होने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। 


भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा मे सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे। 


उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की।


श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र की कथा सुनकर एवं कृष्ण एवं सुदामा के मिलन की झांकी का द्रश्य देख कथा स्थल में मौजूद समस्त भक्तगण भाव विभोर हो गए। 


कथा के अंत में फूलों की होली व शुकदेव विदाई का आयोजन किया गया। 


इस अवसर पर श्रीमती बूटान देवी एवं शोभनाथ ऊमर वैश्य,श्रीमती शिवकुमारी एवं दीपक कुमार (सभासद),श्रीमती सावित्री देवी एवं संजय ऊमर वैश्य और रूपेश,राजेश,मुकेश, शैलेश व हजारों की संख्या में श्रद्धालु गण आदि  लोग मौजूद रहे|।

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