Asghar naqui
अमेठी. दिल्ली के दस जनपथ से लेकर प्रदेश के कांग्रेस गढ़ अमेठी तक में आज पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के 73 वें जन्मदिन पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन है, कहीं साइकिल रैली तो कहीं अस्पतालों में फल वितरण आदि कार्यक्रम। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन स्थापित कर उनके सपने साकार हो सकते हैं? इसका जवाब नहीं में होगा। बात तो तब बनेगी जबकि उनके व्यक्तिव पर प्रकाश डाला जाए के उनकी सोंच क्या थी, उनके विचार क्या थे, उनकी भाषा-शैली और समाज के दबे हुए लोगों के प्रति उनकी लालसा क्या थी!
11 मई 1981 को ली थी कांग्रेस की मेम्बर शिप
आपको बता दें कि राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुम्बई में हुआ था। 30 मई 1981 को युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय समिति ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके राजीव गांधी से चुनाव लड़ने का आग्रह किया, इसके साथ ही 1 मई 1981 को उत्तर प्रदेश कांग्रेस संसदीय दल ने सर्वसम्मति से उन्हें यूपी से चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया। एक बार फिर कांग्रेस संसदीय दल की 7 मई को बैठक हुई, यहां पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की मौजूदगी दर्ज थी, उन्होंने फौरन कहा कि 'बहरहाल अभी भी ये निर्णय राजीव पर निर्भर करता है'। अंत में 11 मई 1981 को तत्कालीन कांग्रेस महासचिव बसंत दादा पाटिल ने अमेठी से उनके चुनाव लड़ने का प्रपोजल रखा। इसी दिन उन्होंने मेम्बर शिप का पर्चा भरा। वर्ष 1982 में वो पहली बार कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बने।
भाई संजय के संजोए सपने साकार करने को समझा अपना कर्तव्य, इसलिए चुना अमेठी
राजनीति के मैदान में राजीव गांधी का अमेठी में पड़े क़दम के पीछे यूँ तो बहुतेरी बातें चर्चा का विषय बनती रही हैं। इसमें पं. नेहरु और इन्दिरा गांधी का इस क्षेत्र के लोगों के प्रति लगाव आदि बातें सामने आती हैं। दरअस्ल इस सबके साथ-साथ अमेठी को लेकर राजीव गांधी का फोकस इसलिए अधिक रहा कि अमेठी के साथ उनके दिवंगत भाई संजय गांधी की स्मृतिया जुड़ी थी। साथ ही साथ अमेठी के विकास को लेकर संजय गांधी के संजोए हुए सपने और वादे थे, जिन्हें पूरा करना राजीव गांधी ने अपना कर्तव्य समझा था! इसके अलावा क्षेत्र की प्राथमिक आवश्यकता और अमेठी के लोगों का प्रबल आग्रह उन्हें यहां खैंच लाया।
2 लाख 47 हज़ार से जीता था पहला चुनाव
आखिर राजीव गांधी ने अमेठी से अपने कैरियर का पहला चुनाव लड़ा, और जब चुनाव के नतीजे आए तो उससे ये झलक उठा कि अमेठी के लिए उनके द्वारा लिया गया निर्णय एकदम सही था। यहां के लोगों के अपार प्रेम व विश्वास और सहयोग का आलम ये रहा के उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को 2 लाख 47 हज़ार वोटों से मात दिया। फिर क्या था देश तो देश विदेशों में भी राजीव चर्चा का विषय बन गए। आलम ये हुआ के 28 जून 1981 को चीन के विदेश मंत्री ने उन्हें अपने मुल्क आने का न्योता भेज दिया। चीन के अलावा इंग्लैंड के युवराज चालर्स ने 19 जुलाई 1981 को उन्हें 29 जुलाई को होने वाले अपने वैवाहिक समारोह का व्यक्तिगत कार्ड दिया।
आईएएस को अपने हाथों से बनाकर दिया था सूप
राजीव गांधी का व्यक्तित्व इतना अच्छा था कि पोस्ट पर होते हुए भी वो मिलन सार और लोगों को तरजीह देते थे। डा. अंगद सिंह जो अमेठी के एक डिग्री कालेज में लेक्चर थे, हाल ही में रिटायर्ड हुए, अपनी स्वच्छ छवि के साथ बेहतरीन सीनियर जर्नालिस्ट हैं। राजीव पर वार्ता करते हुए उन्होंने लखनऊ के सीनियर जर्नालिस्ट रामदत्त त्रिपाठी का हवाला देते हुए राजीव गांधी के जीवन काल का किस्सा सुनाते हुए बताया कि राजीव गांधी कांग्रेस के महासचिव थे और अमेठी दौरे पर पहुंचे थे। वो गौरीगंज के इंस्पेक्शन हाउस में रुके थे। पीएम के पुत्र और उनके उत्तराधिकारी के रूप में वो वीआईपी थे ही। इसलिए विचार-विमर्श के लिए तत्कालीन डीएम जी.डी. मेहरोत्रा वहां पहुंचे। राजीव गांधी उस समय सूप पी रहे थे उन्होंने श्री मेहरोत्रा से पूछा सूप पियोगे तो उन्होंने मना कर दिया। फिर राजीव गांधी ने सवाल किया क्या शाकाहारी हो? तो जवाब मिला हाँ, इस पर बातचीत रोक कर वो उठे किचन में गए खुद अपने हाथो से सूप तैयार कर गिलास में लेकर आए।




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