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वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के गेट पर जिसे सिंहद्वार कहा जाता है, वहां चल रहा छात्राओं का आंदोलन महज़ दो दिन तक ही अहिंसक रह पाया। पहली रात तो छात्राओं ने सड़क पर बिता कर, प्रशासन के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करते हुए काट दी लेकिन दूसरी रात के गहराने के साथ ही आंदोलन हिंसा की भेंट चढ़ गया। ये अलग बात है कि छात्राओं का हौसला अभी भी क़ायम है।
शनिवार देर रात जब परिसर के भीतर हिंसा और अराजकता दोनों एक साथ देखी गई, उस दिन शाम को ही ये आभास होने लगा था कि ऐसा कुछ हो सकता है।
छात्राओं ने गेट पर बैठकर, एक तरह से उसे जाम ज़रूर कर रखा था लेकिन ऐसा नहीं था कि परिसर के भीतर आवाजाही बंद थी। अगल-बगल के दोनों द्वार और ज़रूरी वाहनों और आम लोगों के लिए मुख्य द्वार भी खुला था।
शनिवार रात क़रीब नौ बजे विश्वविद्यालय की ही कुछ महिला प्राध्यापक भी इन छात्राओं को समझाने के लिए वहां आई थीं, छात्राओं के समर्थन में कुछ पुरानी छात्राएं भी दिख रही थीं और बड़ी संख्या में छात्र तो पहले से ही मौजूद थे।
बीच में अचानक इस बात को लेकर विवाद हो रहा था कि 'हम बीएचयू को जेएनयू नहीं बनने देंगे', ज़ोर-शोर से ये बात कहने वाला एक युवक आंदोलनरत छात्राओं से उलझ रहा था और ये भी कहता जा रहा था कि 'हम पहले दिन से और पहली पंक्ति में आपके साथ खड़े हैं, लेकिन ! सवाल उठता है कि 'हम बीएचयू को जेएनयू नहीं बनने देंगे' !
कुछ छात्राओं का सीधे तौर पर आरोप था कि उन लोगों की सीधी सी मांग है, उन्हें सुरक्षा देने की और वो इसीलिए वहां डटी हैं लेकिन कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि उनकी बात सुनी जाए। धरना स्थल पर मौजूद दीपिका नाम की एक छात्रा का कहना था, "ऐसे लोग ही हमें शांत कराना चाहते हैं और ये लोग कुलपति के इशारों पर काम कर रहे हैं।"

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