बहराइच। आज नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी मां की पूजा करता उसे सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। देवी कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं. इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं जीवन में लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
देवी कुष्मांडा पूजा विधि:
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी आराधना में समर्पित हैं उन्हें नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कुष्मांडा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कुष्मांडा की पूजा करें: पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे,” देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए, श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।
कुष्मांडा मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

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