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अलबेले कुप्पी युद्ध में साकार होता है त्रेता युग



दारानगर में सजीव होता है राम-रावण की सेनाओं का युद्ध
इस बार 30 सितम्बर और एक अक्तूबर को होगा अलबेला आयोजन
सत्येन्द्र खरे 
कौशाम्बी :श्रीराम-रावण की सेनाओं के बीच यह ऐसा सजीव युद्ध है जिसकी मिसाल शायद कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। कौशाम्बी की ऐतिहासिक दारानगर बाजार में होने वाला कुप्पी युद्ध इस बार 30 सितम्बर और एक अक्तूबर को होगा। दो दिन में सात बार होने वाले बेहद रोमांचक युद्ध का नजारा देखने को हजारों-हजार की भीड़ हमेशा जुटती है। इस दफा भी ऐसी ही उम्मीद है।  
    दो शताब्दी से अधिक प्राचीन दारानगर की 12 दिवसीय रामलीला बनारस के रामनगर की रामलीला की तर्ज पर होती है। मंच की जगह दारानगर और उसके आस पास के गांवों में पूर्व निर्धारित स्थलों पर लीलाएं होती हैं। भगवान राम, लक्ष्मण, सीता सहित सभी पात्रों के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा रहती है। दारानगर की रामलीला की खासियत दो दिन का कुप्पी युद्ध है। म्योहरा गांव में इसके लिए बाकायदा युद्ध क्षेत्र सजता है। विजयदशमी और एकादशी को इस युद्ध क्षेत्र में राम रावण की सेना के बीच युद्ध का रोमांचक नजारा देखने को मिलता है। बैरीकेटिंग के जरिए युद्ध क्षेत्र बनाया जाता है। भीतर राम और रावण दल की सेनाएं होती हैं। रामदल के सेनानी लाल और रावण सेना के सैनिक काली पोशाक में होते हैं। एक-दूसरे पर प्रहार करने के लिए उनके हाथों में प्लास्टिक की बनी वजनी कुप्पियां होती हैं। दोनों ओर के सैनिकों को एक-दूसरे के सामने बैठा दिया जाता है। इसके बाद युद्ध संचालक सीटी बजाते हैं। सीटी की आवाज सुनते ही दोनों ओर के सेनानी कुप्पियां लेकर एक-दूसरे पर टूट पड़ते हैं। बैरीकेटिंग के बाहर मौजूद दोनों सेनाओं के समर्थक उत्साह बढ़ाते हैं। युद्ध का बिल्कुल सजीव नजारा होता है। संचालकों की सीटी बजते ही युद्ध बंद हो जाता है। एक युद्ध का समय 8 से 10 मिनट का होता है। विजयदशमी के दिन 3 और एकादशी को ऐसे चार युद्ध होते हैं। 


पहले होती थी ऊंट के खाल की कुप्पियां
दारानगर के कुप्पी युद्ध में पहले ऊंट के खाल की बनी कुप्पियां होती थीं। प्राचीन समय में तेल भरने के उपयोग में लाई जाने वाली इन कुप्पियों का आकार सुराही की तरह होता था। समय के साथ इन कुप्पियों को बनाने वाले कारीगर नहीं बचे। अब इनकी जगह प्लास्टिक की वजनी कुप्पियों ने ले ली है। इसका आकार भी पानी भरने वाली सुराही सरीखा ही होता है। इसी को सैनिक एक-दूसरे पर फेंक कर मारते हैं। 


एकादशी को होता है रावण वध
पूरे देश में रावण का वध विजयदशमी को हो जाता है। पर, दारानगर ही शायद ऐसी जगह है जहां रावण का वध एकादशी को होता है। युद्ध क्षेत्र में सीमेंट की बनी रावण की विशालकाय प्रतिमा पर भगवान राम प्रतीक रूप से वाणों की वर्षा करते हैं। ऐसे में मान लिया जाता है कि बुराई के प्रतीक रावण का वध हो गया। 

इनका कहना है
हमारे बुजुर्गों ने हमको एक अलबेली रामलीला की विरासत सौंपी थी। कुप्पी युद्ध इसका सबसे उजला पक्ष है। हम पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से इसको पूरा करते हैं। युद्ध के जरिए हम सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश भी देते हैं। 
आद्या प्रसाद पांडेय, अध्यक्ष-श्रीरामलीला कमेटी, दारानगर

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