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बस्ती:संवेदनशीलता साहित्यकार की सबसे बड़ी पूूंजी




सुनील उपाध्याय 
बस्ती । साहित्यकार समय के सत्य, संघर्ष को जीते हुये जो शव्द देेते हैं वे युगों तक कालजयी रहते हैं। संवेदनशीलता साहित्यकार की सबसे बड़ी पूूंजी है। यह विचार जिला आबकारी अधिकारी, कवि डा. अनुराग मिश्र गैर ने प्रेस क्लब में दुर्गेश कुमार मिश्र सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थान द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन एवं स्मृति सम्मान समारोह में व्यक्त किया। 
इस अवसर पर संस्थान की ओर से संरक्षक डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ अध्यक्ष त्रिभुवन प्रसाद मिश्र के संयोजन में दो प्रमुख कवि श्यामलाल यादव, सतीश आर्य को 5100 रूपये की नकद राशि, स्मृति चिन्ह, उत्तरीय , सम्मानपत्र भेंटकर सम्मानित किया गया। इसके साथ ही विभिन्न विद्यालयों के प्रधानाचार्यो द्वारा चयनित गरीब एवं मेधावी छात्रों विनायक, अमन गुप्ता, हाजरा फिरदौस, वृजेश कुमार यादव, कुमारी प्रियंका को दुर्गेश कुमार मिश्र स्मृति पुरस्कार स्वरूप दो-दो हजार का चेक शैक्षणिक सहयोग के लिये दिया गया। इसी कड़ी में संस्थान की ओर से डा. अनुराग मिश्र ‘गैर’ राजेन्द्रनाथ तिवारी, डा. कमलेश पाण्डेय, डा. रामकृष्ण लाल जगमग, सुरेन्द्र मोहन वर्मा, श्याम प्रकाश शर्मा, डा. वी.के. वर्मा, उमेश चन्द्र श्रीवास्तव, राजेन्द्र प्रसाद दूबे, लालमणि प्रसाद, पंकज सोनी को सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान की ओर से समाजसेवा के क्षेत्र में त्रिभुवन प्रसाद मिश्र को सम्मानित किया गया। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेन्द्रनाथ तिवारी और संचालन डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग ने किया। दूसरे चरण में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें अनुराग मिश्र गैर की रचना ‘ अली कहत हैं कली से आयो माह बसंत, बहक रहे योगी, मुनी, सन्यासी और संत’ को सराहा गया। डा. राम कृष्ण लाल जगमग की रचना ‘ ले संदेशा प्रणय का आया है मधुमास, प्यास बुझाने जा रही नदी सिंधु के पास’ ने बसंत को नई दृष्टि दिया। सतीश आर्य के छंद ‘जब जब सिया को वनवास देते हैं राम, तब-तब पनाह देती है एक झोपडी’ के माध्यम से गरीबी, अमीरी के द्वंद को शव्द दिया। डा. वी.के. वर्मा की रचना ‘ सखि, बसन्त में कंत ने अवगुन्ठन को खोल, चुम्बन के बौछार से रक्तिम किया कपोल’ को सराहा गया। लालमणि प्रसाद की रचना ‘ तन मन में प्रीत जगी, नैनों से लाज भगी, मौसम ले आया है खुशी का खुमार, मन को भरमाने लगी फागुनी बयार’ के माध्यम से बसंत को जीवन्त किया। श्यामलाल यादव, ताजीर वस्तवी, डा. दशरथ प्रसाद यादव, डा. कमलेश पाण्डेय, डा. रामदुलारे पाठक, वसीम अंसारी,  हरीश दरवेश, डा. शिवा त्रिपाठी, आतिश सुल्तानपुरी, पंकज सोनी, सागर गोरखपुरी, जगदम्बा प्रसाद भावुक, डा. राजेन्द्र सिंह, शाद अहमद शाद, अफजल हुसेन, दीपक सिंह प्रेमी, डा. सत्यदेव त्रिपाठी आदि की रचनायें सराही गई। 
आयोजक त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने कार्यक्रम की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुये अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। परशुराम मिश्र, रघुवंश मणि शुक्ल, रामदत्त जोशी, अमित मिश्र, हरिस्वरूप दूबे, दीपक प्रसाद, सुदामा राय, सुमेश्वर प्रसाद यादव, बटुकनाथ शुक्ल, रामवृक्ष सिंह, जय प्रकाश गोस्वामी, रमेश चन्द्र श्रीवास्तव, जय प्रकाश स्वतंत्र, हरिश्चन्द्र के साथ ही बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे। 

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