घर परिवार के लिए चहेती बनी बूढ़ी दादी मां
आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। एक सौ दस वर्ष की बढी दादी मां जरीफुन्नीनिसां पत्नी हशमुल्लाह पवित्र रमजान के महीने में इतनी लम्बी उम्र के बावजूद महीने भर का हंसी खुशी सामान्य दिनों की तरह रोजा रखना सभी की जबानों पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
आज भी बच्चों को सौ साल पुरानी बातें बड़े फख्र के साथ सुनाती है। सेमारियावां निवासी जरीफुननिसां की 65 वर्षीय पुत्री रिटायर टीचर आलम आरा ने बताया हम तीन भाई दो बहन थे। जिसमें दोनों बड़े भाई अबूबकर साहब, अबुल वफ़ा का इन्तिक़ाल हो गया है। उन्होंने बताया कि इतनी लंबी उम्र के बावजूद मेरी माँ पूरे माह का रोजा पाबन्दी के साथ रहती है।
सुबह से लेकर देर रात तक 5 वक्त की नमाज को समय से अदा करती हैं। अभी किसी के सहारे की जरूरत नही पड़ती। अपना सब काम स्वयं कर लेती है। घुटने में दर्द होने की वजह से चलने में दिक्कत होती है। बूढ़ी बुजर्ग दादी माँ जरीफुननिसां के दो भाई तीन बहन थीं। जिसमें दोनों भाई और दोनों बहनों का देहांत हो चुका। अभी सबसे बड़ी जरीफुननिसां आज भी जीवित है और रोजे रखकर नमाज पढ़कर, कुरान की तलावत व इबादत कर नेकियाँ बटोर रही हैं।
जरीफुन्निसां के पौत्र जावेद अहमद ने बताया कि करीब 100 साल की उम्र में हमारे बाबा हशमुल्लाह साहब का 18 वर्ष पूर्व देहांत हो गया। दादी जी अभी भी अपने सभी नवासों पौत्रों पर पौत्रों व पुत्रियों को जानती व पहचानती है। वह सभी से प्रेम दुलार करती है। पौत्र बहू नुजहत बतूल ने बताया कि घर मे बूढ़ी दादी मां को देखकर सभी बच्चे प्रफुल्लित रहते हैं। उनकी सेवा में लगे रहते हैं। दादी माँ बच्चों को खुशी की खातिर कहानी किस्से पुरानी यादगारों को सुनाती रहती हैं।
घर के बच्चे उनकी सेवा के लिए हरदम ततपर रहते हैं। इतने सख्त मौसमा, पछुआ हवा गर्मी बड़े दिन की परवाह किए बगैर सभी रोजा रखती हैं। जिसे देखकर ताज्जुब होता है। सौ साल की पुरानी बातों को बड़े गर्व के साथ सुनाती हैं। घर परिवार वालों की तरह गांव के मशहूर आलम चौधरी, अनवार आलम चौधरी, ज़फ़ीर अली, जावेद अहमद, कारी नसीरुद्दीन, एजाज अहमद करखी, अब्दुल अजीम नदवी, फिरोज नदवी, मो मोकर्रम एडोकेट ने जरीफुन्नीसन की लंबी उम्र की व अच्छे स्वास्थ्य की ईश्वर से कामना की है।
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