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ग़ज़ल:अब न तन्हा रहेगी हमारी ग़ज़ल


अब न तन्हा रहेगी हमारी ग़ज़ल
महफ़िलो में सजेगी हमारी ग़ज़ल

ये रहेगी न मजबूर लाचार सी
 गर्दिशो से लड़ेगी हमारी ग़ज़ल

कोई समझेगा सोचेगा फ़िर बोलेगा
दुश्मनों से भिड़ेगी हमारी ग़ज़ल

इस चमन के लिए ही हँसती रहे
बनके खुशबू उड़ेगी हमारी ग़ज़ल

देखना एक दिन गुनगुनायेंगे सब
हर लवो पे मिलेगी हमारी ग़ज़ल

भाव प्रियतम के लता जगे प्रेम के
दिल मे गहरी उतरेगी हमारी गजल

श्रीमती मंजू "लता"जैन
सिलौड़ी ,जिला -कटनी

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