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कविता :पाप का भार स्वीकार नही


सत्कर्मों को छोड़ पाप का भार मुझे स्वीकार नही।
जीवन भर संघर्ष करूँ पर हार मुझे स्वीकार नहीं।।

उम्मीदों का हाथ छुड़ाकर
सपनों ने वनवास लिया,
दुख की झोली मुझे थमा कर
खुशियों ने सन्यास लिया,

लेकिन फिर भी माँगू मै पतवार मुझे स्वीकार नहीं।
जीवन भर संघर्ष करूँ पर हार मुझे स्वीकार नही।।

जब मन्दिर का दीप बुझाने 
स्वयं चली हैं विपदायें 
पैरों के छाले कहते हैं हम 
बढ़ने से घबरायें

डर जाऊँ या हो जाऊँ लाचार मुझे स्वीकार नही।
जीवन भर संघर्ष करूँ पर हार मुझे स्वीकार नहीं।।

माना की ज्वालाओं ने ही 
जोड़ लिया उससे नाता,
कड़ी धूप मे भी सूरज ने
कभी नहीं माँगा छाता,

असली नकली लोगों का किरदार मुझे स्वीकार नही।
जीवन भर संघर्ष करूँ पर हार मुझे स्वीकार नहीं।।

    डॉ.शिवानी सिंह
प्रवक्ता संस्कृत राष्ट्रीय महाविद्यालय ,सुजानगंज, जौनपुर (उ•प्र•)

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