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कविता :ज़िन्दगी! तू भी किसी करेले से कम नही


ज़िन्दगी!
तू भी किसी करेले से कम नही
सूखी बनी तो रास नही आती
भरवा बनी तो
बड़ी जल्दी गुज़र जाती है।


कड़वाहट इतनी होती है कभी
कि नमक डालकर भी नही निकलती
ज़िन्दगी तू भी
कितनी बार फिसलती है।


बचपन से एक ही तो था
वो करेला
जिसे कभी खाया नही
मा ने मेरे लिए कभी करेला बनाया नही।

तू भी लुका छिपी का खेल दिखाती है|

ऐ ज़िन्दगी!
तू भी किसी करेले से कम नही
सूखी बनी तो रास नही आती
भरवा बनी तो
बड़ी जल्दी गुज़र जाती है।

गार्गी त्रिपाठी 
गाजियाबाद 

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