काउंसलिंग के जरिए पुनः साथ रहने के लिए राजी हो रहे जोड़े
जिले की चर्चित समाजसेविका व अधिवक्ता रूचि मोदी के इस पहल की हो रही सराहना
ए. आर. उस्मानी
गोण्डा। कहते हैं कि रिश्ते की नींव भरोसे पर टिकी होती है, लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि भरोसा होने के बाद भी दिलों के बीच दूरियां आ जाती हैं और रिश्ते में दरार पड़ जाती है।
कुछ कारण तो ऐसे होते हैं, जिन पर कोई ध्यान भी नहीं देता और धीरे-धीरे ये रिश्ते को खोखला करने की वजह बनते हैं। ऐसे में टूटते-बिगड़ते रिश्तों को प्यार और अपनेपन की डोर से बांधकर पुनः मिलाने का काम कर रही हैं जिले की चर्चित समाजसेविका व अधिवक्ता रूचि मोदी।
समाजसेविका रूचि मोदी बिगड़ते-टूटते रिश्तों को प्रेम, विश्वास, भरोसे और अपनेपन के मजबूत धागों से बांधकर गलतफहमियां दूर करने की कोशिश करती हैं। इसके लिए वे काउंसलिंग कराती हैं और एक-दूसरे को समझाने-बुझाने के बाद साथ रहकर सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए न सिर्फ राजी कर लेती हैं,
बल्कि उन्हें हंसी-खुशी से जिंदगी जीने के टिप्स भी बताती हैं। रूचि मोदी अब तक सौ-दो सौ नहीं, बल्कि हजारों की तादाद में ऐसे पारिवारिक मामलों में सुलह करा चुकी हैं।
रूचि मोदी दिसम्बर महीने में ही अब तक 70 से अधिक पारिवारिक मामलों में सुलह समझौता करा चुकी हैं।
सुलह होकर जाने वाले परिजनों का कहना है कि गलतफहमी दूर कर दोबारा एक होने का यह बहुत ही बेहतर माध्यम है। रूचि ने काउंसलिंग के जरिए तमाम परिवारों के बीच गलतफहमियों को दूर कराकर न सिर्फ एक कराया बल्कि गुजारा व तलाक जैसे मुकदमों में विराम लगाते हुए सैकड़ों जोड़ों को पुनः एक बंधन में बांधकर खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया।
दोनों पक्षों का मानना है कि काउंसलिंग के जरिए गलतफहमियां दूर होती हैं तथा आपस में गिले-शिकवे को दूर कर पुनः संवाद की स्थिति बनती है।
पिछले करीब 10 साल से अधिक समय से रूचि मोदी दो दिलों और जोड़ों को जोड़ने तथा मिलाने का काम करती आ रही हैं। वे लगातार पारिवारिक मामलों में सुलह-समझौता कराकर एक करा रही हैं।
अधिवक्ता रूचि मोदी बताती हैं कि गलतफहमियों की वजह से कई बार पति-पत्नी का रिश्ता टूट जाता है। कई बार व्यक्ति अपने पार्टनर को लेकर किसी गलत तरह की गलतफहमी पाल लेता है।
पार्टनर किससे फोन पर बात कर रहा है? क्यों बात कर रहा है? जैसी छोटी-छोटी बातों की वजह से गलतफहमियां पैदा होती हैं, जो आगे चलकर रिश्ता टूटने की वजह बन जाती हैं।
उन्होंने बताया कि कई बार जब लोगों के पास नौकरी या पैसा आने का कोई स्थाई जरिया नहीं होता है, तो ऐसे में वे यह सोचकर शादी के पवित्र बंधन में बंध जाते हैं कि शायद शादी के बाद उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाए, लेकिन कई बार शादी के बाद नौकरी भी नहीं मिलती और आर्थिक हालत भी खराब हो जाती है।
रूचि बताती हैं कि लड़का हो या फिर लड़की, हर किसी का अपनी शादी और उसके बाद की जिंदगी को लेकर अपने सपने होते हैं।
कैसे वे जिंदगी जिएंगे? उनकी जिंदगी में क्या-क्या होगा? वे कई सपने बुनते हैं, लेकिन कभी-कभी सपनों से अलग हकीकत बहुत उल्टी होती है और उम्मीद से अलग मिलने पर इंसान के हाथ निराशा ही लगती है।
वे बताती हैं कि किसी भी रिश्ते को अगर निभाना है, तो उससे भावनात्मक रूप से जुड़ना पड़ता है, लेकिन अक्सर अरेंज मैरिज में इमोशनल जुड़ाव को कम देखा जाता है।
ऐसे में रिश्ता सिर्फ एक पति-पत्नी का लेबल बनकर रह जाता है।
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