रजनीश/ज्ञान प्रकाश
करनैलगंज(गोंडा)। जीवन दायिनी कही जाने वाली सरयू नदी व उसमे पल रहे जीव जंतुओं का अस्तित्व संकट में है।
सरयू नदी आदि काल से अस्तित्व में हैं, इसमे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। जो नदी के जल को शुद्ध करके औषधीय गुण को बढ़ाती हैं।
वहीं इसमें पल रहे विभिन्न प्रकार के जलीय जीव दूषित चीज़ों का सेवन करके जल को शुद्धता प्रदान करते रहते है।
लोगों का मानना है सरयू नदी की पावन जलधारा में प्रतिदिन स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इसी तरह मां सरयू की पावन जल धारा की अनेकों उपयोगिता है।
मगर यह नदी शासन की अनदेखी व जनता की उदासीनता का शिकार होती जा रही है। जिससे नदी का अस्तित्व ही शंकट में पड़ता जा रहा है।
श्रद्धालुओं का अंधविश्वास है लोग अपने घरों में, मंदिरों में व अन्य पूजा स्थलों पर हवन, यज्ञ आदि करके उसमें निकलने वाली राख आदि को बोरी में भरकर बड़े ही श्रद्धा भाव से सरयू नदी में विसर्जित करते हैं।
उन्हें इसका ज्ञान नही है कि राख आदि डालने से नदी वह नदी की तलहटी में बैठ जाएगी और नदी की जलधारण क्षमता दिनोदिन कम होती जाएगी।
नवरात्रि में मां दुर्गा की सैकड़ों प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। नवरातों में बड़े ही श्रद्धाभाव से लोग सरयू की पावन जलधारा में भारी संख्यां में मां दुर्गा की प्रतिमाओं के साथ अन्य प्रतिमाओं का विसर्जन करते हैं।
प्रतिमाओं के निर्माण में प्रयोग की गई मिट्टी नदी की तलहटी में जमा होती है। सुंदरता प्रदान करने के लिये प्रयोग किया गया केमिकल जलीय जीवों के लिये हानिकारक सिद्ध होता है।
वहीं अन्य वस्तुएं सड़कर नदी के जल को दूषित करने का काम करते हैं। इस तरह श्रद्धा के साथ लोग सरयू नदी के अस्तित्व को को समाप्त करने में सहयोग प्रदान करते रहते हैं।
सरकारी तंत्र व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से सरयू नदी पर संकट छाया है। सरयू नदी में मछलियों का शिकार करने के लिये समितियों को अनुमति प्रदान की जाती है।
समिति के लोग जगह जगह बंधिया बांध कर मछलियों को एक रास्ते से निकलने के लिये मजबूर करते हैं। जो नदी के लिये घातक साबित हो रहा है।
श्रद्धालु लगातार सरयू की साफसफाई की मांग करते चले आ रहे हैं मगर कोई सुनने वाला नही है।
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