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धौरहरा में टूटा पुल बनवाने की पुनः मांग करते हुए छात्रों ने हाइवे किया जाम



दो माह पहले वैकल्पिक पुल बनवाने का मिला था आश्वासन

18 सालों से सड़क से जुड़ने को तरस रहे ग्रामीण

25 गांवों की 50 हजार से ज्यादा आबादी प्रभावित,बरसात में बढ़ती हैं मुसीबतें

आयुष मौर्य 

धौरहरा खीरी।कहने सुनने में तो विकास बड़ा सुखद लगता है। मगर विकास की हकीकत बताने के लिए धौरहरा कस्बे के उत्तर धावर नाले पर बना पुल मौजूद है।


जिसके दोनों सिरे कट गए। पुल को जोड़ने वाली सड़क को बाढ़ बहा ले गई। तब से ठूंठ जैसा खड़ा पुल विकास की हकीकत बयां कर रहा है। 


जिससे परेशान धौरहरा में शिक्षा ग्रहण कर रहे जीजीआईसी व जीआईसी के छात्र छात्राओं ने बीते दो माह पहले सिसैया ढखेरवा हाइवे जाम कर पुल बनवाने की मांग शुरू की तो जिम्मेदारों ने उनको वैकल्पिक पुल बनवाने का अस्वासन देकर मना लिया था।


 पर दो माह बाद भी कोई कार्य न होने को देख आज छात्र छात्राओं ने पुनः हाइवे जाम कर विधायक,सांसद समेत पुलिस के खिलाफ़ नारेबाजी कर पुल बनवाने की मांग शुरू कर दी है।जिसको लेकर पुलिस प्रशासन में अफ़रातफ़री का माहौल बना हुआ है।



धौरहरा टाउन के उत्तर धावर नाले पर 1986 मे पांच लाख की लागत से पण्डित पुरवा - सुजई कुण्डा मार्ग पर लगभग 30 मीटर लंबा पुल बना था।


तब से करीब दस वर्ष तक लगभग दो दर्जन गांवों की 50 हजार आबादी के अलावा धौरहरा कस्बे व आसपास के लोग अपना सफर तय करते थे। 1996 में बाढ़ आई और पानी की धारा ने हल्की करवट ली तो पुल की दीवारें धराशायी हो गयी।


 क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से सन् 1997 में जिला पंचायत की तरफ से मरम्मत के लिए सवा लाख रूपए उपलब्ध करवाए गए । सरकारी धन व ग्रामीणों के श्रमदान से 1997-1998  में टूटे पुल की मरम्मत करवाई गई। क्षेत्रीय लोगों का आवागमन बहाल भी हो गया। पर 2002 मे आई भीषण बाढ़ ने पुल का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। बाढ़ दोनों किनारे बहा ले गई। 


जिससे पुल नाले पर तो खड़ा है। मगर किसी काम का नहीं है। धावर नाले का पुल टूटा होने की वजह से पंण्डित पुरवा,मंगरौली,लहसौरी पुरवा,टापर पुरवा,घोसियाना,सुजईकुण्डा,नज्जापुरवा,भटपुरवा,धारीदासपुरवा,हरसिंहपुर,सुनारनपुरवा,बिन्जहा और फुटौहापुरवा आदि गांवों के लोगों को भारी असुविधा होती है।


 जिसको लेकर जनप्रतिनिधियों के अस्वासनों के बाद भी पुल का सुधार नहीँ हो सका। जिसको लेकर आज छात्र छात्राओं ने हाइवे जाम कर प्रशासन से पुल सही करवाने की मांग शुरू कर दी ।कई घण्टे हाइवे जाम रहने के बाद आखिरकार प्रशासन के समझाने पर प्रर्दशन कारी माने और जाम खोल दिया ।


बढ़ता ही जा रहा है किसानों छात्रों का दर्द

पुल के जरिए पारगमन न हो पाना किसानों के साथ साथ छात्र छात्राओं के लिए सबसे ज्यादा दुखभरा है। बाढ़ग्रस्त इलाका होने की वजह से क्षेत्र में गन्ने की पैदावार सबसे ज्यादा है। मिल तक या फिर गन्ना क्रय केंद्रों तक गन्ना पहुंचा पाना सबसे मुश्किल काम है। वहीं शिक्षा के लिए धौरहरा व जिला मुख्यालय पर आने जाने में छात्र छात्राओं को दिक्क़तें होती है। 


भारी भरकम लागत से बना पुल सफेद हाथी साबित हो रहा है। जब पानी कम पड़ता है। तब किसान अपने ट्रैक्टरों और बैलगाड़ियों को पानी में से निकाल लेते हैं। मगर नदी में पानी ज्यादा होने पर खेती किसानी के काम बाधित होते हैं।


उच्च शिक्षा से वंचित हैं नौनिहाल

प्रभावित इलाके में शिक्षा की दशा खराब है। नाला पार के गांवों में प्राइमरी स्कूल है। मगर बरसात के दिनों में स्कूल तक शिक्षकों की पहुंच नहीं हो पाती। गांव के प्राइमरी स्कूल तक पढ़ने के बाद नौनिहालों के लिए आसपास कोई सुविधा नहीं है। 


अभिभावक जोखिम भरे रास्तों के जरिए बच्चों को दूर के स्कूलों में भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जिस वजह से तमाम बच्चों की तालीम अधूरी रह जाती है।


स्वास्थ्य सेवाओं को भी लगा रहता है ग्रहण

पार इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं का भी बुरा हाल है। मरीजों को तत्काल इलाज उपलब्ध कराने की गरज से एम्बुलेंस 102 और 108 जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मगर रास्ता न होने की वजह से एम्बुलेंस मरीजों तक पहुंच नहीं पाती हैं। 


इन हालातों में गम्भीर मरीजों और प्रसूताओं को भारी असुविधा होती है। मरीजों को बैलगाड़ियों के जरिए नजदीकी अस्पतालों तक पहुंचाने में काफी वक्त जाया होता है। जो कभी कभी मरीजों की मौत की वजह बन जाता है। यही नहीं प्लस पोलियो अभियान के तहत भी टीमों और वैक्सीन का पार इलाके तक पहुंच पाना दुष्कर हो जाता है।

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