सरस्वती शिशु विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज में मनाई गई लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती | CRIME JUNCTION सरस्वती शिशु विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज में मनाई गई लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती
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सरस्वती शिशु विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज में मनाई गई लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती



आनंद गुप्ता 

पलिया कलां खीरी:वन्दना सभा में देश के उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती उनके चित्र पर पुष्पार्चन एवं माल्यार्पण कर मनाई गई  । इस अवसर पर उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य धनुषधारी द्विवेदी ने बताया कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे।



सन्‌ 1908 में वे विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई। महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई।

उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नहीं आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नहीं आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

सितंबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का सपष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी ।

उनका यह कथन भी कितना सटीक था भारत में केवल एक व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है- जवाहरलाल नेहरू शेष सब सांप्रदायिक मुसलमान हैं। 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसकी क्षति पूर्ति होना दुष्कर है। यह की सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिया। इसके अलावा जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था। आपकी सेवाओं, दृढ़ता व कार्यक्षमता के कारण ही आपको लौहपुरुष कहा जाता है।

आज भी हम भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर करें, तो देश का लगभग आधा भाग सांप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फंसा दिखाई देता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार पटेल की स्मृति हो उठना स्वभाविक है। ज्ञातव्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलंत प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियायतों को भारतीय संघ में कैसे समाहित किया जाए। जब इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया, वे थे आधुनिक राष्ट्र निर्माता लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल। राष्ट्र आपके द्वारा किए गये इस महान कार्य के लिए सदैव कृतज्ञ व ऋणी रहेगा । इस अवसर पर विद्यालय के सभी छात्र/छात्राएं  आचार्य /आचार्या उपस्थित रही।

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