अखिलेश्वर तिवारी
जनपद बलरामपुर में 6 अप्रैल को एमएलके पीजी कॉलेज के जूलॉजी विभाग में महाविद्यालय प्राचार्य प्रोफेसर जेपी पांडेय के कुशल मार्गदर्शन में और जूलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार की देखरेख मे सत्र 2023-24 के लिए वर्मी कल्चर सर्टिफिकेट कोर्स सफलता पूर्वक संपन्न हो गया है। प्रोफेसर अशोक कुमार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्मी कल्चर सर्टिफिकेट कोर्स में सक्रिय भागीदारी छात्रों को व्यावहारिक कौशल से लैस करती है और प्रकृति के साथ गहरे संबंध को बढ़ावा देती है । साथ ही पर्यावरण प्रबंधन के लिए आजीवन समर्पण का पोषण करती है। वर्मी कल्चर सर्टिफिकेट कोर्स के माध्यम से, छात्रों ने कक्षा से परे अपने प्रयासों को बढ़ाने, सहयोगी स्थिरता पहल में माता-पिता, स्थानीय व्यवसायों और समुदाय के सदस्यों को शामिल करने के लिए विशेषज्ञता प्राप्त की है। पाठ्यक्रम में वर्मी कल्चर का यह एकीकरण न केवल शैक्षिक मानकों का पालन करता है, बल्कि छात्रों को अपने समुदायों के भीतर सकारात्मक बदलाव के लिए उत्प्रेरक बनने का अधिकार भी देता है। जिज्ञासा का पोषण करके, महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देने और पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने से, वर्मी कल्चर न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अधिक टिकाऊ भविष्य में भी योगदान देता है। डॉ. सद्गुरु प्रकाश ने वर्मी कल्चर सर्टिफिकेट कोर्स में छात्रों को शामिल करने के शैक्षिक मूल्य पर जोर दिया । उन्होंने इसके विविध सीखने के अवसरों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वर्मी कम्पोस्टिंग लैंडफिल को भेजे गए जैविक कचरे को प्रभावी ढंग से कम करती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है और एक परिपत्र अर्थव्यवस्था में योगदान होता है। डॉ. आकांक्षा त्रिपाठी ने पाठ्यक्रम सामग्री के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें उल्लेख किया गया है कि छात्र कीड़े की जटिल दुनिया का पता लगाते हैं, उनके शरीर रचना विज्ञान, व्यवहार और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर पोषक तत्वों के चक्रण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं। डॉ. आनंद बाजपेयी ने कचरे में कमी और स्थायी जैविक अपशिष्ट प्रबंधन में वर्मी कल्चर के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह अभ्यास पर्यावरण के अनुकूल खाद बनाने के तरीकों को कैसे बढ़ावा देता है। संतोष तिवारी ने खाद बनाने में शामिल रासायनिक प्रक्रियाओं को समझने के महत्व पर जोर दिया । यह देखते हुए कि यह छात्रों की अपघटन, पोषक चक्र और मिट्टी के स्वास्थ्य की समझ को बढ़ाता है। मानसी पटेल ने व्यावहारिक सीखने के अनुभवों की आवश्यकता को रेखांकित किया जो न केवल समझ को गहरा करते हैं बल्कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी की भावना भी पैदा करते हैं। उन्होंने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक आकर्षक अवसर के रूप में वर्मी कल्चर पर प्रकाश डाला। डॉ. कमलेश कुमार ने जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी में वर्मी कल्चर की व्यावहारिक अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डाला तथा व्यक्तियों और पर्यावरण दोनों पर इसके सकारात्मक प्रभाव को रेखांकित किया। डॉ. आर. त्रिपाठी ने वर्मी कल्चर प्रणाली के प्रबंधन के माध्यम से विकसित समस्या को सुलझाने के कौशल पर जोर दिया, जिससे छात्रों को मुद्दों का निवारण करने और अवलोकन और विश्लेषण के आधार पर अपने तरीकों को अनुकूलित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। वर्षा सिंह ने जैविक खाद्य अपशिष्ट को तोड़ने के लिए कीड़े का उपयोग करने की एक मनोरम प्रक्रिया के रूप में वर्मी कल्चर की शुरुआत की, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनती है। उन्होंने जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी में इसके व्यावहारिक अनुप्रयोगों के साथ-साथ व्यक्तियों और पर्यावरण के लिए इसके असंख्य लाभों पर जोर दिया।
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