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तीन तलाक का फैसला सारे मज़ाहिब के साथ मजहबे इस्लाम की एक बहुत बड़ी कामयाबी:नय्यर मियां


अमरजीत सिंह 
फैज़ाबाद :हज़रत शेख मखदूम अहमद अब्दुल हक़ की दरगाह शरीफ के सज्जादा नशीन शाह अम्मार अहमद अहमदी उर्फ़ नय्यर मियां ने एक समय में तीन तलाक के सुप्रीम कोर्ट के कल के फैसले को इस्लाम के लिये किसी हद तक सराहनीय कहा है एक समय में तीन तलाक देना इस्लामी कानून के हिसाब से ठीक नहीं है और इस काम को हम जुर्म करार देते हैं। लिहाजा भारत सरकार इस जुर्म की सजा निर्धारित करे न कि उसके खात्मे का फैसला करे।यही शरीअत का कानून है और हमें इस पर पूरी तरह से एख्तियार मिलना चाहिए जैसा कि जस्टिस अब्दुन्नजीर,जस्टिस कोरियन जोजफ,और जस्टिस खेर ने संविधान की धारा 25 में तमाम मजहब के मानने वालों को अपने अपने मज़हबी कानून के तहत जिंदगी गुजारने का पूरा हक तस्लीम किया है और यह फैसला सारे मज़ाहिब के साथ साथ खासकर हमारे मजहबे इस्लाम की एक बहुत बड़ी कामयाबी है।और इससे हमारे ख्यालात की भरपूर ताईद होती है और इस बात की भी गारंटी देती है कि कोर्ट किसी भी मजहब व मिल्लत के मजहबी मुआमलात में दखलंदाजी न करे और धारा 25 के तहत हर भारतीय को उसके मज़हबी इख्तियार के हिफाजत की जमानत दी गईं है।और जिसको सुप्रीम कोर्ट ने कुबूल किया और सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कुबूल किया है कि पर्सनल लॉ को अदालतों की तरफ से बुनियादी हुक़ूक़ की अवहेलना की बुनियाद पर चैलेंज नहीं किया जा सकता यह भी हमारे लिये एक कामयाबी है।इस कानून के तहत हम मुसलमान अपने मुल्क में अपने मज़हबी एतबार से जिंदगी गुजारने का पूरा हक रखते हैं।लेकिन कुरआन और हदीस का हुक्म ही हमारे लिये अव्वलीन दर्जा रखता है हमारे मज़हब ने औरतों को जो इज्ज़त और तहफ़्फ़ुज़ दिया है और शरीअत की हद में रहते हुए जो आजादी दी है दुनिया के किसी मज़हब में इसकी नजीर नहीं मिलती जहां तक तलाके बिदअत का ताअल्लुक़ है तो मुस्लिम तंजीमें इस बात को पहले ही बता चुकी हैं कि एक समय में तीन तलाक ,तलाक़ देने का बेहतर तरीका नहीं है।साथ ही कई सर्वे से यह भी पता चला है की जमीनी सतह पर ऐसा बहुत कम होता है एक लंबे समय से हम खुद इस ताअल्लुक़ से समाजी इस्लाही प्रोग्राम चलाकर और बोर्ड की जानिब से मॉडल निकाह नामा जारी करके तलाक की इस शक्ल पर रोक लगाने के लिये कार्यरत हैं गत 22 मई 2017 को मुस्लिम तंजीमों ने जो हलफ नामा कोर्ट में फाइल किया था उसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि बोर्ड ने निकाह पढाने वाले मौलवियों और काजियों को हिदायत दी है कि वह निकाह पढ़ाते वक्त दोनों फरीक़ों की मंजूरी से यह शर्त लगा सकते हैं कि शौहर अपनी बीवी को एक समय में तीन तलाक नहीं देगा।और नय्यर मियां ने कहा कि हम कोर्ट के फैसले का एहतराम करते हुए इन मसायल पर गौर व फिक्र करके उन्हें हल  करने की कोशिशें तलाश करेंगे।

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