दिल के जज़्बातों को कैसे सुला दूं मैं,
चाहा है सिर्फ तुमको कैसे भुला दूं मैं।
जब तक है जांं में जांं, चाहूंगी बस तुम्हें,
सूली पे अपनी चाहत कैसे चढ़ा दूं मैं।
पाई है मुश्किलों से मैंने तेरी मोहब्बत,
पल भर में ये मोहब्बत कैसे गंवा दूं मैं।
मजबूर ना करो अपनी कसम दिलाकर,
अब तक वफाएंं की हैं कैसे दगा दूं मैं।
दिल को नहीं गवारा तुमसे बिछड़ के जीना,
कह दो तो आशिक़ी में खुद को मिटा दूं मैं।
"शारदेय" सुषमा श्रीवास्तव
कानपुर, उत्तर प्रदेश
प्रस्तुति
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