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'किशोर क्लीनिक' के माध्यम से किशोरों की समस्या का हो रहा सम्पूर्ण समाधान



● जिला अस्‍पताल के किशोर क्‍लीनिक में इलाज के लिए निरन्‍तर आते हैं किशोर

● पुरुष और महिला काउन्‍सलर गोपनीय तरीके से करते हैं समस्‍या का निराकरण

आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। प्रतिभा स्‍कूल जाते समय अक्‍सर थककर बैठ जाती थी, साथ ही उसकी माहवारी भी अनियमित हो गई थी। उसे इस स्थिति में देख उसकी सहेली गीता ने कुरेदकर पूछा तो सारी बातें सामने आईं। इसके बाद गीता अपने साथ उसे जिला अस्‍पताल के किशोर क्‍लीनिक में ले गई। वहां पर महिला काउन्‍स‍लर ने उसकी समस्‍या को सुना और आयरन तथा कैल्शियम की गोलियां दीं। साथ ही उसे महिला चिकित्‍सक के पास ले जाकर जांच भी कराई। अब प्रतिभा पूरी तरह स्‍वस्‍थ है। कोई भी समस्‍या होने पर किशोर क्‍लीनिक जरुर जाती है।
मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी डॉ हरगोविन्‍द सिंह बताते हैं कि प्रतिभा की तरह से अनेक किशोरों और किशोरियों की समस्‍याओं को ध्‍यान में रखते हुए जिला अस्‍पताल के प्रथम तल पर कमरा नम्‍बर 84 में 10 से 19 साल तक के युवाओं के लिए किशोर क्‍लीनिक स्‍था‍पित किया गया है। जिला किशोर स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के तहत चल रहे इस किशोर क्‍लीनिक की स्‍थापना मार्च 2016 में की गई थी। शुरुआती दौर में तो यहां पर किशोरों का आवागमन कम था। लेकिन अब प्रत्‍येक दिन तकरीबन 25  किशोर और 20 किशोरियां इलाज के लिए आ जाती हैं। किशोर क्‍लीनिक के प्रति किशोर और किशोरियों का विश्‍वास इतना है कि अप्रैल 2018 से लेकर अभी तक 1055 किशोरों और 840 किशोरियों का इलाज हो चुका है। किशोर क्‍लीनिक में पुरुष काउन्‍सलर के रूप में दयानाथ तिवारी तथा महिला काउन्‍सलर के रूप में रेनू श्रीवास्‍तव तैनात हैं। किशोर या किशोरियां जो बातें घर में या किसी चिकित्‍सक से शेयर नहीं कर सकते हैं, वे अपनी बातें यहां खुलकर शेयर करते हैं । काउन्‍सलर निरन्‍तर किशोरों और किशोरियों का उचित सलाह व इलाज मुहैया कराकर उनके जीवन के आने वाले समय को बेहतर बना रहे हैं।

■ छ: बिन्‍दुओं को ध्‍यान में रखकर इलाज

किशोरों का इलाज कुल 6 बिन्‍दुओं को ध्‍यान में रखकर किया जाता है। इसमें पोषण, नशावृत्ति, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, गैरसंचारी रोग (ब्‍लड प्रेशर, डायबि‍टीज, कैंसर जैसी बीमारियों) से बचाव, यौन व प्रजनन तथा चोट व हिंसा से बचाव जैसे मुद्दों को लेकर किया जाता है।

■ ठेलों पर खाने से एनिमिक होते हैं बच्‍चे

दयानाथ तिवारी बताते हैं कि प्राय: बच्‍चों के पास कम पैसे होते हैं। इसलिए वे ठेलों पर जाकर चाट, पकौड़ी, चाउमिन, डोसा आदि खाते हैं। ऐसा करने से बच्‍चों को पर्याप्‍त पोषण नहीं मिल पाता है। इसके चलते किशोर एनिमिक हो जाते हैं।

■ क्लिनिक के अतिरिक्त होती है आउटरीच

दोनों काउंसलर क्‍लीनिक में बैठने के अतिरिक्‍त आउटरीच भी करते हैं। आउटरीच के दौरान वे छठवीं से लेकर 12वीं तक के स्‍कूलों में भी जाते हैं। इन स्‍कूलों में जाकर वे बच्‍चों को क्‍लीनिक की सुविधाओं के बारे में बताते हैं, ताकि बच्‍चों का इलाज हो सके।

■ आउट आफ स्‍कूल की भी काउन्सिलिंग

काउन्‍सलर रेनू श्रीवास्‍तव बताती है कि ऐसा नहीं है कि केवल स्‍कूल के बच्‍चों की ही काउन्सिलिंग होती है। यहां पर आउट आफ स्‍कूल भी बच्‍चों की काउन्सिलिंग की जाती है। रास्‍ते में चलते समय अगर किशोर या किशोरियों का ग्रुप लूडो, ताश, क्रिकेट, झूला खेलते हुए मिल जाता है तो उनके बीच जाकर काउन्‍सलर समस्‍याओं के बारे में पूछते हैं तथा किशोर क्‍लीनिक आने के लिए प्रेरित करते हैं।

किशोरों की समस्‍याओं के समाधान के लिए जिला अस्‍पताल में इस किशोर क्‍लीनिक की स्‍थापना हुई है। इसके बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं। जिले के हर ब्‍लाक में एक एक किशोर क्‍लीनिक खोलने की योजना है। इस दिशा में कार्य निरन्‍तर चल रहा है।

दीन दयाल वर्मा
जिला समन्‍वयक
राष्‍ट्रीय किशोर स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम

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